WEBVTT 00:00:51.030 --> 00:00:56.700 प्राचीन से आधुनिक काल तक दुनिया के सबसे महानतम आध्यात्मिक गुरुओं ने विचार साझा किया है कि 00:00:56.700 --> 00:01:01.620 हमारे अस्तित्व की गहरी सच्चाई किसी एक विशेष 00:01:01.620 --> 00:01:06.780 धार्मिक या आध्यात्मिक परंपरा की सम्पत्ति नहीं है बल्कि 00:01:06.780 --> 00:01:10.430 प्रत्येक व्यक्ति के मन में समाई हैा 00:01:20.510 --> 00:01:28.880 कवि रूमी ने कहा है "ऐसा चंद्रमा कहाँ है जो न कभी उगता है न डूबता है? 00:01:28.880 --> 00:01:36.580 ऐसी आत्मा कहाँ है जो हमारे साथ है भी और नहीं भी। यह न कहो कि वह यहाँ या वहाँ है। 00:01:36.580 --> 00:01:45.879 सारी रचना 'वही' है, लेकिन उन आँखों के लिए जो उसे देख सकती हैं। 00:02:49.770 --> 00:02:55.350 टॉवर ऑफ़ बेबल की कथा में मानवता अनगिनत भाषाओँ , 00:02:55.350 --> 00:03:04.250 विश्वास, संस्कृतियों और दिलचस्पियों में बँटी हुई है । बेबल का शाब्दिक अर्थ है "ईश्वर का द्वार"। 00:03:04.250 --> 00:03:15.510 द्वार हमारा सोचने वाली बुद्धि है - हमारी अनुकूलित संरचनाएँ। उन लोगों के लिए 00:03:15.510 --> 00:03:22.110 जो अपनी असली प्रकृति, नाम और रूप से अलग अपने अस्तित्व को समझने का प्रयास करते हैं, 00:03:22.110 --> 00:03:28.400 उन्हें द्वार से परे के महान रहस्य से अवगत कराया जाता है। 00:03:35.250 --> 00:03:43.080 एक पुरानी हाथी की नीति कथा के ज़रिए बताया गया है कि कैसे अलग-अलग 00:03:43.080 --> 00:03:50.490 परंपराएँ एक ही महान सत्य की ओर इशारा कर रही हैं। कुछ अंधे लोग 00:03:50.490 --> 00:03:56.280 एक हाथी के अलग-अलग अंगों को छूते हैं, और सबकी एक अलग धारणा बनती है कि 00:03:56.280 --> 00:04:04.020 हाथी क्या है। हाथी के पैर के पास खड़ा व्यक्ति हाथी को एक 00:04:04.020 --> 00:04:11.400 पेड़ की तरह बताता है। पूंछ की ओर खड़ा व्यक्ति उसे रस्सी जैसा बताता है। 00:04:11.400 --> 00:04:20.488 हाथी के दाँत को छूने वाला व्यक्ति उसे भाले की तरह बताता है। और कोई 00:04:20.488 --> 00:04:25.730 जो कान को छूता है, उसे लगता है कि हाथी एक पंखे की तरह है। 00:04:26.000 --> 00:04:34.340 जो हाथी के पेट को छूता है उसे हाथी दीवार की तरह लगता है। 00:04:34.340 --> 00:04:39.980 समस्या यह है कि हम हाथी के अपने अंश को छूते हैं और हम अपने अनुभव को ही 00:04:39.980 --> 00:04:47.510 सच मान लेते हैं। हम न तो स्वीकार करते हैं न ही मानते हैं कि हर व्यक्ति का अनुभव 00:04:47.510 --> 00:04:53.920 एक ही प्राणी के विभिन्न पहलू हैं। 00:05:16.690 --> 00:05:22.250 सार्वकालिक दर्शन एक समझ है कि सभी आध्यात्मिक और धार्मिक परंपराएँ 00:05:22.250 --> 00:05:29.000 एक ही सार्वभौमिक सत्य का उल्लेख करती हैं। एक रहस्यात्मक या 00:05:29.000 --> 00:05:34.610 परम सत्य जिसकी नींव पर सभी आध्यात्मिक ज्ञान और उसके 00:05:34.610 --> 00:05:44.839 सिद्धांत विकसित हुए हैं। 00:05:45.920 --> 00:05:52.400 स्वामी विवेकानंद ने यह कह कर सार्वकालिक शिक्षा का सारांश प्रस्तुत किया, "हर धर्म का 00:05:52.400 --> 00:05:59.870 लक्ष्य आत्मा में ईश्वर का बोध है। यही एकमात्र वैश्विक धर्म है।" 00:05:59.870 --> 00:06:08.300 इस फिल्म में जब हम ईश्वर शब्द का प्रयोग करते हैं तो वह ज्ञानातीत रूपक मात्र है 00:06:08.300 --> 00:06:16.160 जो सीमित अहंकारी मन से परे उस विलक्षण रहस्य की ओर इशारा करता है। 00:06:16.160 --> 00:06:23.870 अपने सच्चे आत्म ज्ञान या अंतर्निहित आत्म को समझने का मतलब अपनी दिव्य प्रकृति को जानना है। 00:06:23.870 --> 00:06:31.310 हर एक आत्मा में चेतना के नए उच्च स्तर की समझ, उसे नींद से जगाने और उसके 00:06:31.310 --> 00:07:04.170 स्वरूप के साथ उसे पहचानने की क्षमता होती है। 00:07:04.170 --> 00:07:11.380 अपनी पुस्तक "ब्रेव न्यू वर्ल्ड " के लिए विख्यात लेखक और दूरदर्शी आल्डस हक्सले ने 00:07:11.380 --> 00:07:16.390 "द पेरिनियल फिलॉसफी" नामक पुस्तक भी लिखी, जिसमें उन्होंने उस शिक्षा के बारे में लिखा है 00:07:16.390 --> 00:07:22.270 जो इतिहास में बार बार दोहराई जाती है, जो उस संस्कृति का रूप लेती है 00:07:22.270 --> 00:07:29.020 जिसमें उसे महसूस किया जाता है। वे लिखते हैं, "द पेरिनियल फिलॉसफी 00:07:29.020 --> 00:07:36.400 संस्कृत सूत्र "तत् त्वम असि"; "जो तुम हो" में काफ़ी संक्षिप्त रूप में व्यक्त किया गया है। 00:07:36.400 --> 00:07:45.130 आत्मा या श्रेष्ठ अविनाशी आत्म वही है जो ब्रह्म में लीन है, यह परम सिद्धांत है 00:07:45.130 --> 00:07:50.830 हर अस्तित्व का, और हरेक मानव का आखिरी अंत है 00:07:50.830 --> 00:08:00.090 स्वयं तथ्य की खोज करना। यह पता लगाना कि दरअसल वह कौन है? 00:08:06.419 --> 00:08:12.939 हर परम्परा रत्न के फलक जैसी है जो उसी सत्य का अलग परिप्रेक्ष्य 00:08:12.939 --> 00:08:19.830 दिखाती है, जबकि परस्पर वही भाव प्रतिध्वनित और प्रकाशित करती है। 00:08:19.830 --> 00:08:26.080 चाहे कोई भी भाषा या वैचारिक सोच इस्तेमाल की गयी हो, सभी धर्म जो 00:08:26.080 --> 00:08:31.029 शाश्वत सत्य की शिक्षा देते हैं, उनकी यही अवधारणा होती है कि किसी परम तत्व से 00:08:31.029 --> 00:08:35.849 मिलन होना है, जो हमारी समझ से परे है। 00:09:08.860 --> 00:09:15.230 यह संभव है कि उनसे सीख और उनके साथ स्व की भावना का भेद किए बिना 00:09:15.230 --> 00:09:22.610 एक या अनेक स्रोतों की शिक्षा को एकीकृत करें। ऐसा कहा जाता है कि समस्त सच्चा 00:09:22.610 --> 00:09:28.940 आध्यात्मिक ज्ञान उस परम सत्य की ओर इशारा करती हुई उंगलियाँ हैं। यदि हम 00:09:28.940 --> 00:09:34.730 राहत के लिए इस सीख से हठधर्मिता के साथ चिपके रहते हैं तो यह हमारे आध्यात्मिक विकास में 00:09:34.730 --> 00:09:42.650 बाधक बन जाएगा। सत्य को किसी अवधारणा से परे जानने के लिए हमें 00:09:42.650 --> 00:09:50.650 सभी लगाव और मोह को छोड़ना होगा, सभी धार्मिक अवधारणाओं को त्यागना होगा। 00:09:53.680 --> 00:09:59.860 अहंकार के परिप्रेक्ष्य से आपको समाधि की ओर इशारा करने वाली उँगली सीधे पाताल की ओर 00:09:59.860 --> 00:10:04.470 इशारा करती है। 00:10:05.630 --> 00:10:11.660 क्रॉस के सेंट जॉन ने कहा है, "अगर कोई सत्य की राह पर चलने की इच्छा रखता है, 00:10:11.660 --> 00:10:17.650 तो उसको अपनी आंखें बंद कर लेनी चाहिए और अंधेरे में चलना चाहिए।" 00:10:50.660 --> 00:10:55.940 समाधि अज्ञात में एक छलांग के साथ शुरू होती है। 00:11:08.360 --> 00:11:14.269 प्राचीन परंपराओं में यह कहा गया है कि समाधि प्राप्त करने के लिए व्यक्ति को अंततः 00:11:14.269 --> 00:11:20.449 चेतना को सभी ज्ञात वस्तुओं से दूर रखना होगा; सभी बाहरी प्रत्यक्ष 00:11:20.449 --> 00:11:27.519 वस्तुओं से, अनुकूलित विचारों और संवेदनाओं से, स्वयं चेतना की दिशा में। 00:11:27.519 --> 00:11:36.980 आंतरिक स्रोत की ओर; अपने अस्तित्व के केंद्र या मूल में। इस फिल्म में जब हम 00:11:36.980 --> 00:11:42.290 समाधि शब्द का प्रयोग करते हैं तो हम परम तत्व की ओर इशारा करते हैं। उच्चतम 00:11:42.290 --> 00:11:48.339 समाधि की ओर, जिसे निर्विकल्प समाधि नाम दिया गया है। 00:11:53.010 --> 00:11:59.160 निर्विकल्प समाधि में अपनी गतिविधि बंद होती है, 00:11:59.160 --> 00:12:06.149 खोजने और करने की। हम केवल उसके बारे में बोल सकते हैं जो हमारे पास जाने पर दूर जाता है 00:12:06.149 --> 00:12:13.199 और जो हमारे वापस लौटने पर फिर दिखाई देने लगता है। न तो कोई समझ है और न ही 00:12:13.199 --> 00:12:21.000 कोई नासमझी, न तो कोई "चीज़" है और न ही "कोई चीज़ नहीं", न तो चेतना और न ही 00:12:21.000 --> 00:12:34.089 अचेतन। यह पूर्ण, अतुलनीय, और मन के लिए रहस्यपूर्ण है। 00:12:34.089 --> 00:12:39.920 जब आत्मा गतिविधि की ओर लौटती है तब अज्ञानता रहती है ; एक तरह का पुनर्जन्म, 00:12:39.920 --> 00:12:46.220 और सब कुछ फिर से नया हो जाता है। हमारे अंदर दिव्य शक्ति की खुशबु रह जाती है, 00:12:46.220 --> 00:12:54.309 जो तब तक रहती है जब तक मानव इस पथ पर बढ़ते रहते हैं। 00:13:02.040 --> 00:13:07.110 प्राचीन परंपराओं में अनेक तरह की समाधि का वर्णन है और 00:13:07.110 --> 00:13:13.570 भाषा ने वर्षों तक काफ़ी भ्रम पैदा किया है। हम समाधि शब्द का चयन 00:13:13.570 --> 00:13:18.190 ज्ञानातीत मिलन को दर्शाने के लिए कर रहे हैं, लेकिन हम इतनी ही 00:13:18.190 --> 00:13:24.790 आसानी से किसी भी परंपरा के शब्द का प्रयोग कर सकते थे। समाधि एक प्राचीन संस्कृत 00:13:24.790 --> 00:13:30.970 शब्द है जो भारत के वैदिक, योगिक और सांख्य परंपरा में आम है, और 00:13:30.970 --> 00:13:38.410 कई अन्य आध्यात्मिक परंपराओं में मौजूद है। समाधि पतंजली योग के 00:13:38.410 --> 00:13:42.490 आठ अंगो में से एक, और बुद्ध के 00:13:42.490 --> 00:13:50.200 पावन अष्टांगिक मार्ग में आठवां है। बुद्ध ने "निर्वाण" शब्द का प्रयोग किया 00:13:50.200 --> 00:13:57.510 "वान" का समापन या आत्म गतिविधि का समापन। 00:13:58.260 --> 00:14:07.330 पतंजलि ने योग या समाधि को संस्कृत के "चित्त वृत्ति निरोध" के रूप में वर्णित किया, जिसका संस्कृत 00:14:07.330 --> 00:14:16.470 अर्थ है "भंवर या सर्पिल मन का समापन।" यह चेतना के 00:14:16.470 --> 00:14:47.700 सम्पूर्ण विन्यास या मन के रचनात्मक विन्यास को सुलझाना है। 00:14:50.040 --> 00:14:56.439 समाधि किसी अवधारणा को नहीं बताती क्योंकि इसे प्राप्त करने के लिए आवश्यक है 00:14:56.439 --> 00:15:00.660 कि हम अपने वैचारिक मन को त्याग दें। 00:15:02.010 --> 00:15:08.519 विभिन्न धर्मों ने दिव्य मिलन का वर्णन करने के लिए विभिन्न शब्दों का उपयोग किया है। 00:15:08.519 --> 00:15:16.690 दरअसल धर्म या रिलिजन शब्द का अर्थ भी वैसा ही कुछ है। लैटिन में "रैलिगेर" 00:15:16.690 --> 00:15:24.430 का मतलब है पुनः बांधना या पुनः जुड़ना। योग में भी इसका वही अर्थ है जिसका 00:15:24.430 --> 00:15:33.610 मतलब है सांसारिकता को परमात्मा से बांधना या जोड़ना। इस्लाम में 00:15:33.610 --> 00:15:39.310 प्राचीन अरबी शब्द इस्लाम का ही शाब्दिक अर्थ है 00:15:39.310 --> 00:15:47.170 पूर्ण समर्पण अथवा भगवान से याचना। यह आत्मा की संपूर्ण विनम्रता या 00:15:47.170 --> 00:15:52.750 आत्मसमर्पण का प्रतीक है। 00:15:52.750 --> 00:16:03.120 ईसाई रहस्यवादी जैसे कि असीसी के सेंट फ्रांसिस, एविला की सेंट टेरेसा और 00:16:03.120 --> 00:16:10.149 क्रॉस के सेंट जॉन अंतर्निहित ईश्वर के साम्राज्य, ईश्वर से दिव्य मिलन का वर्णन करते हैं 00:16:10.149 --> 00:16:19.589 गॉस्पेल ऑफ़ थॉमस में, ईसा मसीह ने कहा है "साम्राज्य यहाँ या वहाँ नहीं है। 00:16:19.589 --> 00:16:25.569 बल्कि पूरे संसार में परमपिता का शासन है और लोग इसे 00:16:25.569 --> 00:16:35.019 देख नहीं पाते हैं। "ग्रीक दार्शनिक प्लेटो, प्लोटिनस, परमेनाइड्स 00:16:35.019 --> 00:16:41.410 और हेराक्लिटस के लेखन को सार्वकालिक शिक्षण बिंदु के लेंस के माध्यम से देखने पर 00:16:41.410 --> 00:16:50.620 इसी ज्ञान की ओर इशारा करते नज़र आते हैं। प्लॉटिनस सिखाता है कि सबसे बड़ा मानवीय प्रयास 00:16:50.620 --> 00:16:57.129 अपनी आत्मा को सर्वोच्च शक्ति की ओर ले जाने और उसमें एकाकार होने 00:16:57.129 --> 00:17:00.919 के लिए निर्देशित होना चाहिए। 00:17:02.660 --> 00:17:10.949 लकोटा औषधि और पवित्रात्मा ब्लैक एल्क ने कहा है, "पहली शांति, जो 00:17:10.949 --> 00:17:15.900 सबसे महत्वपूर्ण है, वह मानव के भीतर से आती है जब वे ब्रह्मांड और उसकी 00:17:15.900 --> 00:17:21.900 शक्तियों के साथ अपना संबंध, अपनी एकता मह्सूस करते हैं, और जब 00:17:21.900 --> 00:17:27.869 वे महसूस करते हैं कि ब्रह्मांड के केंद्र में महान आत्मा रहती है और 00:17:27.869 --> 00:17:36.170 इसका केंद्र वास्तव में हर जगह है। यह हम में से प्रत्येक के भीतर है। 00:17:59.370 --> 00:18:03.720 जब तक हम समाधि में ना हो जागरूकता के पथ पर 00:18:03.720 --> 00:18:11.310 हमेशा दो ध्रुवीयताएँ होती हैं, दो द्वार जिनमें आप प्रवेश कर सकते हैं। इसके दो पहलु है 00:18:11.310 --> 00:18:19.650 एक शुद्ध चेतना की ओर, दूसरा असाधारण दुनिया की ओर। ऊपरी धारा 00:18:19.650 --> 00:18:25.680 परमात्मा की ओर जाती है, और निचली धारा माया और उन सबकी ओर 00:18:25.680 --> 00:18:33.030 जो प्रत्यक्ष है, देखा और अनदेखा, दोनों। सगे सम्बन्धियों के साथ रिश्ता और 00:18:33.030 --> 00:18:37.250 परमात्मा के साथ रिश्ते को श्री निसर्गदत्त महाराज के निम्नलिखित उद्धरण से संपूर्ण रूप से समझा जा सकता है 00:18:37.250 --> 00:18:46.550 कि: "ज्ञान यह जानना है कि मैं कुछ भी नहीं हूँ, प्रेम यह जानना है कि मैं ही सब कुछ हूँ, और 00:18:46.550 --> 00:18:54.020 इन दोनों के बीच मेरी ज़िन्दगी चलती है" 00:18:54.020 --> 00:19:01.320 इस मिलन से जिसका जन्म होता है वह एक नई दिव्य चेतना है। इन ध्रुवीयताओं के 00:19:01.320 --> 00:19:06.890 विवाह या मिलन से कुछ उत्पन्न हुआ या द्वैतवादी पहचान का पतन, 00:19:06.890 --> 00:19:16.690 फिर भी जो पैदा हुआ वह कोई चीज़ नहीं है और वह कभी पैदा ही नहीं हुआ था। 00:19:18.740 --> 00:19:25.080 चेतना कुछ नई रचना से खिलती है, जिसे आप कह सकते हैं 00:19:25.080 --> 00:19:28.460 शाश्वत त्रिमूर्ति। 00:19:28.720 --> 00:19:35.230 परमपिता परमात्मा, ज्ञानातीत, जिसे जाना नहीं जा सकता और जो अपरिवर्तनशील है, जो 00:19:35.230 --> 00:19:43.540 दिव्य शक्ति से जुड़ा है , जो पूरी तरह परिवर्तनशील है। यह मिलन एक 00:19:43.540 --> 00:19:49.740 रासायनिक परिवर्तन लाता है; एक तरह की मृत्यु और पुनर्जन्म। 00:19:51.610 --> 00:19:57.690 वैदिक शिक्षण में दो मौलिक शक्तियाँ दिव्य मिलन का प्रतिनिधित्व करती हैं 00:19:57.690 --> 00:20:06.460 शिव और शक्ति। विभिन्न देवताओं के नाम और चेहरे पूरे इतिहास में बदल जाते हैं 00:20:06.460 --> 00:20:13.990 लेकिन उनके मौलिक गुण वही रहते हैं। इस मिलन से पैदा होती है 00:20:13.990 --> 00:20:22.650 एक नई दिव्य चेतना, दुनिया में अस्तित्व का एक नया तरीका। दो ध्रुवीयताएँ 00:20:22.650 --> 00:20:30.910 अविश्वसनीय रूप से एक। एक सार्वभौमिक ऊर्जा, केन्द्रहीन, सीमा से मुक्त। 00:20:30.910 --> 00:20:35.090 यह विशुद्ध प्रेम है। इसमें पाने या खोने के लिए कुछ भी नहीं है 00:20:35.090 --> 00:20:51.130 क्योंकि यह पूरी तरह खाली है लेकिन बिल्कुल संपूर्ण। 00:20:51.130 --> 00:20:57.429 चाहे वह मेसोपोटामिया के रहस्यमय संप्रदाय हों, या आध्यात्मिक परम्पराएँ हों 00:20:57.429 --> 00:21:02.460 बेबिलोनिया और असीरिया की, प्राचीन मिस्र के धर्म हों, 00:21:02.460 --> 00:21:08.080 या प्राचीन अफ्रीका की नूबियन और केमेटिक संस्कृतियाँ, शमनिक और मूल 00:21:08.080 --> 00:21:15.150 परंपराएँ दुनिया भर की , प्राचीन ग्रीस के रहस्यवादी, नॉस्टिकवादी 00:21:15.150 --> 00:21:30.240 अद्वैतवादी बौद्ध, ताओवादी, यहूदी, ज़रदुश्त, जैन , मुस्लिम, 00:21:30.240 --> 00:21:37.030 या ईसाई हों, पर सबको जोड़ने वाली कड़ी है उनकी सर्वोच्च आध्यात्मिक 00:21:37.030 --> 00:21:43.709 अंतर्दृष्टि, जिसने अपने अनुयायियों को समाधि हासिल करने की इजाजत दी है। 00:21:44.940 --> 00:21:52.420 मूल शब्द समाधि का अर्थ सभी चीज़ों में समानता या एकता को महसूस करना है। 00:21:52.420 --> 00:21:59.920 इसका मतलब संघ है। यह अपने सभी पहलुओं को एकजुट करना है। 00:21:59.920 --> 00:22:07.870 लेकिन समाधि की वास्तविक प्राप्ति के लिए बौद्धिक समझ को 00:22:07.870 --> 00:22:16.120 भ्रमित मत करो। दरअसल आपकी स्थिरता, आपका खालीपन ही है जो एकजुट करता है 00:22:16.120 --> 00:22:46.270 सर्पिल जीवन के सभी स्तरों को। 00:22:55.090 --> 00:23:00.250 समाधि के इस प्राचीन शिक्षण के माध्यम से ही मानवता सभी धर्मों के सामान्य स्रोत को 00:23:00.250 --> 00:23:05.380 समझने की शुरुआत कर सकती है और एक बार फिर सर्पिल जीवन, 00:23:05.380 --> 00:23:12.810 परमात्म, धम्म या ताओ के साथ एक सीध में आ सकती है। 00:23:13.860 --> 00:23:21.019 सर्पिलता वह पुल है जो सूक्ष्म जगत से ब्रह्मांड तक फैलता है। 00:23:23.380 --> 00:23:30.630 आपके डीएनए से जो ऊर्जा आंतरिक कमल तक चक्रों के माध्यम से, आकाशगंगा की 00:23:30.630 --> 00:23:35.640 सर्पिल र्भुजाओं तक व्याप्त है। 00:23:35.640 --> 00:23:42.650 आत्मा का हर स्तर सर्पिलता के माध्यम से सदा विकसित शाखाओं के रूप में व्यक्त किया जाता है, 00:23:42.650 --> 00:23:50.570 जीते हुए, अन्वेषण करते हुए। सच्ची समाधि स्वयं के सभी स्तरों पर 00:23:50.570 --> 00:24:00.140 शून्यता को प्राप्त करना है। आत्मा के सभी आवरणों में। सर्पिलता अंतहीन खेल है 00:24:00.140 --> 00:24:05.800 द्वंद्व तथा जीवन और मृत्यु के चक्र का। 00:24:08.200 --> 00:24:18.099 कभी-कभी हम स्रोत से अपना सम्बन्ध भूल जाते हैं। 00:24:19.940 --> 00:24:27.899 जिस लेंस से हम देखते हैं वह बहुत छोटा है और हम अपनी पहचान करते हैं कि 00:24:27.899 --> 00:24:33.629 हम धरती पर रेंगने वाले सीमित प्राणी हैं, ताकि एक बार फिर यात्रा पूरी कर सकें 00:24:33.629 --> 00:24:36.110 वापस उस स्रोत तक; 00:24:37.639 --> 00:24:46.330 केंद्र तक, जो हर जगह है। 00:24:48.010 --> 00:24:55.060 चुआंग त्ज़ू ने कहा है, "जब इस और उस के बीच कोई और अलगाव नहीं होता है, तो उसे 00:24:55.060 --> 00:25:02.040 ताओ का स्थिर बिंदु कहा जाता है। सर्पिल के केंद्र में स्थिर बिंदु पर 00:25:02.040 --> 00:25:10.299 सभी में अनंत को देख सकते हैं।" 00:25:13.730 --> 00:25:22.960 प्राचीन मंत्र "ओम् मणि पद्मेहम" का एक काव्यात्मक अर्थ है। जैसे कोई जागृत या महसूस करता है 00:25:22.960 --> 00:25:31.269 अपने कमल के भीतरी रत्न को। उसी तरह आपकी सच्ची प्रकृति आत्मा के भीतर जागती है, 00:25:31.269 --> 00:25:36.880 दुनिया के भीतर दुनिया के रूप में। 00:25:50.010 --> 00:25:57.760 हर्मेटिक सिद्धांत "जो ऊपर है वही नीचे है, जो नीचे है वही ऊपर है" के प्रयोग द्वारा हम समनुरूप 00:25:57.760 --> 00:26:03.419 उपयोग कर सकते हैं मन और स्थिरता के बीच संबंधों की समानता, सापेक्ष और निरपेक्ष को 00:26:03.419 --> 00:26:07.049 समझने के लिए। 00:26:12.830 --> 00:26:18.740 समाधि की गैर-वैचारिक प्रकृति को समझने का एक तरीका है 00:26:18.740 --> 00:26:24.980 ब्लैक होल की सादृश्यता का प्रयोग करना। 00:26:24.999 --> 00:26:30.609 ब्लैक होल परंपरागत रूप से अंतरिक्ष के एक क्षेत्र के रूप में वर्णित है 00:26:30.609 --> 00:26:37.209 जिसमे गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र इतना शक्तिशाली है कि कोई प्रकाश या पदार्थ बच नहीं सकता है। नए सिद्धांत 00:26:37.209 --> 00:26:42.809 यह पुष्टि करते है कि सभी वस्तुएँ छोटे से छोटे सूक्ष्मदर्शी कण से लेकर 00:26:42.809 --> 00:26:48.359 आकाशगंगा जैसी ब्रह्मांडीय संरचनाओं तक में ब्लैक होल या रहस्यमय 00:26:48.359 --> 00:26:55.479 एक केंद्र होता है । इस समानता में हम उपयोग करने जा रहे हैं 00:26:55.479 --> 00:27:01.589 ब्लैक होल की यह नई परिभाषा कि "केंद्र जो हर जगह है"। 00:27:06.630 --> 00:27:13.590 ज़ेन में कई कवितायें और उपाख्यान हैं जो हमें बिना द्वार के प्रवेश-द्वार से 00:27:13.590 --> 00:27:23.590 रू-ब-रू करवाते हैं। समाधि प्राप्त करने के लिए हमें बिन दरवाज़े के प्रवेश द्वार से गुज़रना होगा। 00:27:23.590 --> 00:27:30.249 किसी घटना का क्षितिज अंतरिक्षीय समय में वह सीमा है जिसके बाद कोई भी घटना 00:27:30.249 --> 00:27:36.070 किसी बाहरी व्यक्ति को प्रभावित नहीं कर सकती है ' जिसका मतलब है कि 00:27:36.070 --> 00:27:43.210 घटना क्षितिज आपके लिए अज्ञात है। आप कह सकते हैं कि घटना के क्षितिज 00:27:43.210 --> 00:27:50.470 का ब्लैक होल एक द्वारविहीन द्वार की तरह है। यह आत्म और अनात्म के बीच की 00:27:50.470 --> 00:28:00.890 सीमा है। ऐसा कोई "मैं "नहीं है जो इस घटना के क्षितिज के पार जा सके। 00:28:00.890 --> 00:28:07.010 ब्लैक होल के केंद्र में एक-आयामी चीज़ है जिसमें 00:28:07.010 --> 00:28:13.580 बहुत ही छोटी जगह में अरबों सूर्यों का भार है। जिसका मतलब है 00:28:13.580 --> 00:28:20.450 अनंत भार। यानी कि ब्रह्मांड कुछ इतनी छोटी जगह में 00:28:20.450 --> 00:28:27.110 जो एक रेत के कण से भी छोटा हो। एकात्मकता समय से परे है और 00:28:27.110 --> 00:28:35.419 अंतरिक्ष से भी। भौतिकी के अनुसार गति असंभव है , चीज़ों का अस्तित्व 00:28:35.419 --> 00:28:40.650 असंभव है। यह जो कुछ है, वह सम्बंधित नहीं है 00:28:40.650 --> 00:28:46.140 किसी भी धारणा से, इसके बावजूद इसे स्थिरता नहीं कहा जा सकता। 00:28:46.140 --> 00:28:53.880 यह स्थिरता और गति से परे है। जब आप उस केंद्र को समझ जाते हैं जो 00:28:53.880 --> 00:29:01.159 हर जगह है कहीं भी नहीं है, तो द्वंद्व खंडित करता है, आकार और खालीपन को 00:29:01.159 --> 00:29:05.820 समय और अनंत को। 00:29:05.820 --> 00:29:13.390 इसे हम ऐसी गतिशील स्थिरता और भरा पूरा खालीपन कह सकते हैं जो स्थापित है 00:29:13.390 --> 00:29:22.080 पूर्ण अंधेरे के केंद्र में। ताओवादी शिक्षक लाओ त्से ने कहा है 00:29:22.080 --> 00:29:29.540 "अंधेरे के भीतर अंधेरा सभी समझ का प्रवेश द्वार।" 00:29:38.630 --> 00:29:45.330 लेखक और तुलनात्मक पुराणों के अध्येता जोसेफ़ कैम्पबेल पुनरावर्ती प्रतीक का वर्णन करते है 00:29:45.330 --> 00:29:52.400 जो हिस्सा है शाश्वत दर्शन का जिसको वो एक्सिस मंडी कहते है,जिसका 00:29:52.400 --> 00:29:57.090 मतलब है केंद्र बिंदु या उच्चतम शिखर। एक धुरी 00:29:57.090 --> 00:30:02.820 जिसके चारों ओर सब कुछ घूमता है। वह बिंदु जहाँ स्थिरता और गति 00:30:02.820 --> 00:30:11.820 एक साथ होते हैं। इसके केंद्र से एक शक्तिशाली वृक्ष फलता फूलता है। एक बोधी वृक्ष 00:30:11.820 --> 00:30:24.810 जो पूरे संसार को जोड़ता है। जैसे सूर्य ब्लैक होल में चला जाता है, जब आप 00:30:24.810 --> 00:30:31.470 परम ज्ञान के करीब पहुँचते है, आपका जीवन इसके चारों ओर घूमना शुरू कर देता है और आप 00:30:31.470 --> 00:30:35.030 गायब होने लगते हैं। 00:30:38.700 --> 00:30:46.450 जैसे ही आप स्थिर आत्म से संपर्क करते हैं, यह अहंकार संरचना को डरा सकता है। 00:30:46.450 --> 00:30:53.330 द्वारपालक उनका परिक्षण करते है जो अपनी यात्रा पर हैं। 00:30:53.330 --> 00:30:59.460 हर किसी को अपने सबसे बड़े डर का सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए और साथ ही साथ 00:30:59.460 --> 00:31:07.950 अपनी अंतर्निहित शक्ति को स्वीकार करना चाहिए। अपने अचेतन भय को और छिपी सुंदरता को 00:31:07.950 --> 00:31:19.650 प्रकाशित करना चाहिए। यदि आपका मन विचलित नहीं होता है और आप कोई आत्म प्रतिक्रिया भी नहीं करते है तो 00:31:19.650 --> 00:31:26.400 अचेतन से उत्पन्न सभी घटनाएँ समाप्त हो जाती है। 00:31:26.400 --> 00:31:33.330 यह आध्यात्मिक यात्रा का वह समय है जब विश्वास की सर्वाधिक आवश्यकता होती है। 00:31:33.330 --> 00:31:42.360 विश्वास से हमारा क्या मतलब है? आस्था और विश्वास एकसमान नहीं है। विश्वास है अपने दिमागी स्तर पर 00:31:42.360 --> 00:31:49.170 कुछ स्वीकार करना राहत और आश्वासन के लिए। विश्वास है अनुभव के अंकन या 00:31:49.170 --> 00:31:57.390 उसे नियंत्रित करने का दिमाग़ी तरीक़ा। आस्था इसके ठीक विपरीत है। आस्था है 00:31:57.390 --> 00:32:03.360 पूरी तरह से अज्ञानी बने रहना, हर वो चीज़ स्वीकार करना जो उत्पन्न हो 00:32:03.360 --> 00:32:10.260 आपके अचेतन से। आस्था एकात्मकता के खिंचाव के प्रति समर्पण है, 00:32:10.260 --> 00:32:27.040 अपने आप का सम्मिलन या समापन द्वारविहीन द्वार से गुज़रने के लिए। 00:32:28.340 --> 00:32:34.830 आकाशगंगा का विकास और उसकी संरचना ब्लैक होल से निकटता से बंधी हुई है 00:32:34.830 --> 00:32:40.380 ठीक उसी प्रकार जैसे आपका विकास जुड़ा हुआ है अंतर्भूत आत्म की उपस्थिति के साथ 00:32:40.380 --> 00:32:46.550 एकात्म, जो आपका सच्चा स्वभाव है। 00:32:47.700 --> 00:32:53.190 हम ब्लैक होल को नहीं देख सकते हैं, लेकिन हमें इसके आस-पास गतिशील चीज़ों से इसके बारे में 00:32:53.190 --> 00:33:01.380 पता चलता है, जिस प्रकार यह भौतिक वास्तविकता के साथ परस्पर-क्रिया करता है। उसी तरह हम 00:33:01.380 --> 00:33:08.720 अपनी असली प्रकृति को नहीं देख सकते हैं। स्थिर आत्म कोई वस्तु नहीं है, लेकिन हम देख सकते हैं 00:33:08.720 --> 00:33:16.790 प्रबुद्ध क्रिया। जैसा कि ज़ेन मास्टर सुजुकी ने कहा है, "सच मानिये तो यहाँ 00:33:16.790 --> 00:33:25.819 कोई प्रबुद्ध लोग नहीं है। केवल प्रबुद्ध गतिविधि है।" 00:33:25.990 --> 00:33:34.280 हम इसे देख नहीं सकते जैसे कि आँख खुद को नहीं देख सकती है। हम इसे नहीं देख सकते क्योंकि यह वो चीज़ है 00:33:34.280 --> 00:33:41.030 जिसके माध्यम से देखना संभव है। ब्लैक होल की तरह समाधि भी 00:33:41.030 --> 00:33:48.260 शून्यता नहीं है , और न ही यह कोई चीज़ है। यह होने या न होने के द्वन्द्व को 00:33:48.260 --> 00:33:56.899 खत्म करती है। परम सत्य में प्रवेश के लिए कोई द्वार नहीं है, 00:33:56.899 --> 00:34:04.759 लेकिन अनंत पथ हैं। धर्म का पथ एक अंतहीन सर्पिल पथ की तरह है 00:34:04.759 --> 00:34:13.010 जिसका कोई आदि और कोई अंत नहीं है। कोई भी द्वारविहीन द्वार से गुज़र नहीं सकता। किसी की बुद्धि ने 00:34:13.010 --> 00:34:22.730 अभी तक यह पता नहीं लगाया है और न कभी लगा पायेगा। कोई भी द्वारविहीन द्वार से नहीं गुज़र सकता है, 00:34:22.730 --> 00:34:29.120 तो ऐसा ही सही। 00:34:43.969 --> 00:34:53.369 समाधि पथहीन मार्ग, सुनहरी कुंजी है। यह हमारी आत्म संरचनाओं के साथ 00:34:53.370 --> 00:35:15.060 पहचान का अंत है जो हमारी आंतरिक और बाहरी दुनिया को अलग करती हैं। 00:35:15.060 --> 00:35:20.400 कई विकासशील नमूने हैं जो आत्म संरचना की परतों या स्तरों का वर्णन करते हैं 00:35:20.400 --> 00:35:28.380 हम एक उदाहरण का उपयोग करेंगे जो बहुत प्राचीन है। 00:35:28.380 --> 00:35:36.030 उपनिषदों में, आत्मन या आत्मा को ढकने वाले आवरण को कोष कहा जाता है। प्रत्येक कोष 00:35:36.030 --> 00:35:44.040 एक दर्पण की तरह है। आत्म संरचना की एक परत; एक आवरण या माया का स्तर 00:35:44.040 --> 00:35:51.320 जो हमें अपनी मूल प्रकृति को समझने से भटकाता है अगर उससे हमारी पहचान होती है। 00:35:51.320 --> 00:35:59.670 अधिकांश लोग प्रतिबिंब देखते हैं और मान लेते हैं कि वे वही हैं। 00:35:59.670 --> 00:36:07.110 एक दर्पण पशु परत, यानी भौतिक शरीर को दर्शाता है। एक और दर्पण दर्शाता है 00:36:07.110 --> 00:36:14.580 आपके मन, आपकी सोच, आपकी सहज वृत्तियों, और धारणाओं को। दूसरा आपकी आंतरिक ऊर्जा 00:36:14.580 --> 00:36:21.030 या प्राण को, जिसे आप अंतर्मुखी होकर देख सकते हैं। एक और दर्पण 00:36:21.030 --> 00:36:26.490 आपके काल्पनिक स्तर को दर्शाता है जो उच्चतर मन या ज्ञान की परत है, 00:36:26.490 --> 00:36:33.300 और बहुत सारी ऐसी सर्वोच्च परतें हैं जो अतींद्रिय या अद्वैत आनंद का अनुभव कराती हैं 00:36:33.300 --> 00:36:36.950 समाधि की ओर अग्रसर होने पर। 00:36:37.000 --> 00:36:42.530 यहाँ संभावित रूप से अनगिनत दर्पण या आत्मा के पहलू हैं जिसमें कोई भी 00:36:42.530 --> 00:36:50.640 अंतर कर सकता है, और वे लगातार बदलते रहते हैं। 00:36:50.640 --> 00:36:56.220 अधिकांश लोगों ने अभी तक प्राणिक, उच्च मन और अद्वैत आनंद की परतों की खोज नहीं की है 00:36:56.220 --> 00:37:01.069 वे उनके अस्तित्व के बारे में भी नहीं जानते हैं। 00:37:01.190 --> 00:37:09.029 ये परतें आपके जीवन को सूचित कर रही हैं लेकिन आप उन्हें नहीं देख रहे हैं। छिपे दर्पण 00:37:09.029 --> 00:37:13.880 दिखाई देने वालों की तुलना में हमारे जीवन को अधिक जानकारी देते हैं। 00:37:13.880 --> 00:37:19.349 वे अदृश्य हैं क्योंकि ज्यादातर लोगों के लिए वे पूरी तरह उनकी चेतना मे प्रकाशित नहीं होते हैं 00:37:19.349 --> 00:37:28.680 इंद्र के रत्न-जाल की तरह, सभी दर्पण एक दूसरे को प्रतिबिंबित करते हैं और 00:37:28.680 --> 00:37:35.940 प्रतिबिंब असीम रूप से हर दूसरे प्रतिबिंब को प्रतिबिंबित करते हैं। एक स्तर पर कोई बदलाव 00:37:35.940 --> 00:37:41.690 सभी स्तरों को एक साथ प्रभावित करता है। 00:37:42.420 --> 00:37:48.670 इन दर्पणों में से कुछ छाया में छोड़े जा सकते हैं जब तक कि हम इतने भाग्यशाली न हों 00:37:48.670 --> 00:37:55.120 कि उन पर प्रकाश डालने में हमारी मदद के लिए कोई सक्षम मार्गदर्शक हमारे साथ हो। सच ये है कि 00:37:55.120 --> 00:38:03.480 हम ये नहीं जानते कि हम क्या नहीं जानते है | अब कल्पना करें कि आप सभी दर्पणों को तोड़ दें। 00:38:03.480 --> 00:38:12.420 आपके पास स्वयं को प्रतिबिंबित करने के लिए कुछ भी नहीं है। आप कहाँ हैं? 00:38:14.140 --> 00:38:23.349 जब मन स्थिर हो जाता है तो दर्पण प्रतिबिंबित करना बंद कर देते हैं। फिर कोई 00:38:23.349 --> 00:38:32.980 विषय और वस्तु नहीं रह जाता है। लेकिन इस स्थिति को शून्यता या विस्मृति की आदिम स्थिति समझने की 00:38:32.980 --> 00:38:47.719 गलती ना करें। आत्म कुछ नहीं है लेकिन ऐसा भी न समझें कि यह कुछ भी नहीं है। 00:38:47.750 --> 00:38:57.349 स्रोत कोई चीज नहीं है, यह अपने आप मे खालीपन या स्थिरता है। 00:38:57.349 --> 00:39:05.720 यह एक खालीपन है जो सभी चीजों का स्रोत है। आकृति को बिल्कुल खालीपन के स्वरूप में 00:39:05.720 --> 00:39:16.880 महसूस किया जाता है और खालीपन को एक आकृति में पा सकते हैं। यह स्रोत महान 00:39:16.880 --> 00:39:23.320 सृष्टि का गर्भ है जो सभी संभावनाओं से भरी हुई है। 00:39:40.800 --> 00:39:47.710 समाधि अवैयक्तिक चेतना की जागृति है। जैसे ही आप 00:39:47.710 --> 00:39:53.619 सपना देखते है, जागने पर आपको एहसास होता है कि सपने में जो कुछ था वो 00:39:53.619 --> 00:39:58.930 बस आपके दिमाग में है। समाधि को समझने पर यह महसूस किया जाता है कि 00:39:58.930 --> 00:40:04.600 इस दुनिया में सब कुछ ऊर्जा के स्तर पर स्तरों और चेतना के भीतर हो रहा है 00:40:04.600 --> 00:40:13.150 यह दर्पण के भीतर सारे दर्पण हैं, सपनों के भीतर सपने। आप जिसे 00:40:13.150 --> 00:40:20.520 मानते हैं कि आप हैं, सपना और और सपना देखने वाला, दोनों हैं। 00:40:33.559 --> 00:40:43.530 इस फिल्म में हम जो भी कहते हैं, उसे भूल जाएँ। उसे मन में धारण न करें। आत्मा 00:40:43.530 --> 00:40:48.890 सपना देख रहा है, आपका सपना देख रहा है। 00:40:49.130 --> 00:40:56.970 सपना, वह सब कुछ है जो बदल रहा है, लेकिन इस परिवर्तनहीनता को महसूस करना संभव है। 00:40:56.970 --> 00:41:13.410 यह अहसास सीमित व्यक्तिगत मन से 00:41:13.410 --> 00:41:22.310 समझा नहीं जा सकता है। 00:41:22.310 --> 00:41:29.020 जब हम निर्विकल्प समाधि से बाहर आते हैं तो दर्पण फिर से प्रतिबिंबित करना प्रारंभ करते हैं 00:41:29.020 --> 00:41:36.550 यह समझा जाता है कि जिस दुनिया में अपने रहने की बात आप सोचते हैं दरअसल वह आप हैं। 00:41:36.550 --> 00:41:43.970 जो केवल आपका एक अस्थायी प्रतिबिंब है और आप उसी तक सीमित नहीं है, लेकिन 00:41:43.970 --> 00:41:53.800 आप अपने सच्चे प्रकृति के सभी के स्रोत को जानते हैं । उच्च ज्ञान की यह शुरुआत, 00:41:53.800 --> 00:42:04.220 भ्रूण, "प्रज्ञा" या आत्मिक ज्ञान समाधि से उत्पन्न हुआ है। 00:42:04.220 --> 00:42:13.040 जॉब चोकमाह की किताब के अनुसार ज्ञान शून्यता से उपजती है। ज्ञान का यह बिंदु 00:42:13.040 --> 00:42:18.890 असीम रूप से छोटा होते हुए भी पूरे अस्तित्व को घेरता है, लेकिन इसे तब तक 00:42:18.890 --> 00:42:24.970 समझा नहीं जा सकता जब तक उसने दर्पणों के महल में कोई आकार और स्वरूप ना दिया हो 00:42:24.970 --> 00:42:31.760 उस दर्पण के महल को "बिनाह " कहा जाता है, जो गर्भ उच्च ज्ञान से उत्पन्न होता है और जो 00:42:31.760 --> 00:42:50.330 भ्रूणीय ईश्वर की आत्मा को आकार देता है। 00:42:50.330 --> 00:43:00.600 [संगीत] इंडियाजिव द्वारा "अब्वून द बाश्माया" 00:43:07.570 --> 00:43:14.650 दर्पण या मन का अस्तित्व कोई समस्या नहीं है। 00:43:14.650 --> 00:43:22.030 इसके विपरीत, मानव धारणा की त्रुटि या विचलन यह है कि हम इससे अपनी पहचान करते हैं। 00:43:22.030 --> 00:43:32.620 यह भ्रम, कि हम सीमित आत्म हैं, माया है। योगिक 00:43:32.620 --> 00:43:38.020 मार्ग का कहना है कि समाधि को समझने के लिए ध्यान लक्ष्य का पालन तब तक करना चाहिए 00:43:38.020 --> 00:43:49.630 जब तक कि आप इसमें लीन न हो जाएँ या यह आप में न समा जाए। हालांकि 00:43:49.630 --> 00:43:55.930 विभिन्न परंपराओं में भाषा अपने मूल में असमान हैं, लेकिन वे सभी आत्म-पहचान और 00:43:55.930 --> 00:44:00.850 आत्म केंद्रित गतिविधि के समापन की ओर 00:44:00.850 --> 00:44:08.140 इशारा करते है। बुद्ध हमेशा नकारात्मक शब्दों में पढ़ाया करते थे। उन्होंने सिखाया कि सीधे 00:44:08.140 --> 00:44:14.670 आत्म संरचना की खोज करें। उन्होंने यह नहीं कहा कि समाधि क्या थी 00:44:14.670 --> 00:44:23.500 सिवाय इसके कि यह सभी कष्टों का अंत है । अद्वैत वेदांत का एक शब्द है "नेति " 00:44:23.500 --> 00:44:31.200 जिसका अर्थ है "ना ये ना वो।" आत्म-प्राप्ति के मार्ग पर चलने वाले लोग 00:44:31.200 --> 00:44:37.810 अपनी असली प्रकृति या ब्रह्म की प्रकृति के बारे में पहले यह जानकर खोज करते हैं कि 00:44:37.810 --> 00:44:42.489 वे क्या नहीं हैं। 00:44:42.720 --> 00:44:49.180 इसी तरह ईसाई धर्म में अविला की सेंट टेरेसा ने प्रार्थना के लिए एक दृष्टिकोण का वर्णन किया 00:44:49.180 --> 00:44:56.620 जो नकारात्मक पथ, या नेगेटिवा पर आधारित है । शांत, समर्पण और मिलाप द्वारा प्रार्थना, 00:44:56.620 --> 00:45:02.760 यही एक तरीका है परम तत्व तक पहुँचने का। 00:45:03.400 --> 00:45:09.009 अलग होने की इस क्रमिक प्रक्रिया से व्यक्ति ऐसी कोई चीज़ छोड़ सकता है 00:45:09.009 --> 00:45:17.680 जो स्थाई न हो, जो बदल रहा हो। मन, अहंकार का निर्माण और 00:45:17.680 --> 00:45:24.160 आत्म की छिपी परतों सहित सभी घटनाएं। अचेतन मन का उस 00:45:24.160 --> 00:45:30.999 एक स्रोत को प्रतिबिंबित करने के लिए पारदर्शी होना ज़रूरी है। अगर अचेतन में कुछ 00:45:30.999 --> 00:45:37.359 गहरा ज्ञान या कोई आत्म परिचालन है, तो फिर हमारा जीवन बंद रह जाता है 00:45:37.359 --> 00:45:44.519 एक छिपे पैटर्न की भूलभुलैया में जिसमे अज्ञात आत्म शामिल है। 00:45:47.960 --> 00:45:55.289 जब स्व की सभी परतें शून्य के रूप में प्रकट होती हैं तो व्यक्ति स्व से मुक्त हो जाता है। 00:45:55.289 --> 00:46:00.019 सभी अवधारणाओं से मुक्त। 00:46:03.750 --> 00:46:11.160 आपके विकास का महत्वपूर्ण बिंदु वह है जब आप महसूस करते हैं कि आप नहीं जानते कि आप कौन हैं। 00:46:11.160 --> 00:46:22.240 साँस का अनुभव कौन करता है? स्वाद का अनुभव कौन करता है? 00:46:22.240 --> 00:46:35.880 मंत्र, अनुष्ठान, नृत्य, पहाड़ का अनुभव कौन करता है? साक्ष्य ही गवाह है, 00:46:35.880 --> 00:46:39.630 अवलोकन ही पर्यवेक्षक। 00:46:40.220 --> 00:46:47.210 सबसे पहले जब आप पर्यवेक्षक का अवलोकन करते हैं तो आप केवल झूठे आत्म को देखेंगे, लेकिन यदि 00:46:47.210 --> 00:46:52.300 आप आग्रही हैं तो वह हार मान लेगा। 00:46:54.020 --> 00:47:00.140 सीधे पूछताछ करें कौन और क्या अनुभव करता है। 00:47:00.140 --> 00:47:10.040 बिना पलकें झपकाए, तीखेपन से, सूक्ष्मदर्शी बनकर अपने अस्तित्व की पूरी ताकत के साथ। 00:47:17.000 --> 00:47:19.060 [संगीत] "गते, गते, परागते। पार सम गते, बोधिस्वाहा।" (अर्थ: चला गया, बहुत दूर, जागृत स्रोत से परे पूरी तरह से) 00:47:19.579 --> 00:47:32.356 - बिना अनुवाद उपशीर्षक - 00:47:47.840 --> 00:47:57.140 जागने वाला कोई आत्म नहीं है। जागने वाला कोई "आप" नहीं हो। आप जिसे 00:47:57.140 --> 00:48:03.500 जगा रहे हैं वह अलग आत्म का भ्रम है। अपने उस सपने से जो 00:48:03.500 --> 00:48:08.120 सीमित "आप" हैं। इसके बारे में बात करना अर्थहीन है। 00:48:08.120 --> 00:48:15.130 आत्म को समझने के लिए आत्म का वास्तविक समापन होना चाहिए कि यह क्या है, और 00:48:15.130 --> 00:48:23.540 जब यह महसूस हो जाए तो इसके बारे में कहने को कुछ भी नहीं बचता है। जैसे ही आप 00:48:23.540 --> 00:48:39.510 कुछ कहते हैं आप मन में वापस आ जाते हैं। मैंने पहले ही बहुत कुछ कहा है। 00:48:39.510 --> 00:48:46.030 आम तौर पर चेतना की तीन अवस्थाएँ होती हैं: जागना, सपना देखना और गहरी नींद। 00:48:46.030 --> 00:48:53.380 समाधि को कभी-कभी चौथी अवस्था कहा जाता है, जो प्राथमिक अवस्था है 00:48:53.380 --> 00:49:00.460 चेतना की। आदिम जागृति जो निरंतर उपस्थित हो सकती है और 00:49:00.460 --> 00:49:10.470 अन्य चेतन अवस्थाओं के साथ समानांतर में उपस्थित है। वेदांत में इसे तूरीय कहा जाता है। 00:49:10.950 --> 00:49:17.220 तूरीय के लिए अन्य नाम दिए गए है क्राइस्ट चेतना , कृष्ण चेतना, 00:49:17.220 --> 00:49:26.680 बुद्ध प्रकृति या सहज समाधि। सहज समाधि में स्थिर आत्म अपनी सभी 00:49:26.680 --> 00:49:33.670 मानवीय गतिविधियों के पूर्ण उपयोग के साथ उपस्थित है। स्थिरता 00:49:33.670 --> 00:49:38.580 बदलती सर्पिल घटना के केंद्र में गतिहीन है। 00:49:38.580 --> 00:49:45.630 विचार, भावनाएँ, संवेदनाएँ और ऊर्जा इसकी परिधि के चारों ओर घूमती हैं 00:49:45.630 --> 00:49:54.130 लेकिन स्थिरता की मात्रा या मैं-हूँ-की भावना बाहरी गतिविधि के दौरान बिल्कुल वैसी बनी रहती है 00:49:54.130 --> 00:50:02.680 जैसे कि ध्यान में। यह संभव है कि अंतर्हित आत्म गहरी नींद में भी 00:50:02.680 --> 00:50:11.800 मौजूद रहे; कि आपकी मैं हूँ की जागरूकता चेतना के परिवर्तन की अवस्थायों के रूप में 00:50:11.800 --> 00:50:15.450 आती या जाती नहीं है। 00:50:20.420 --> 00:50:24.190 यह योगिक निद्रा है। 00:50:24.660 --> 00:50:29.970 हिब्रू बाइबिल या ओल्ड टेस्टामेंट का सांग्स ऑफ सांग्स, या सांग ऑफ़ सोलोमन 00:50:29.970 --> 00:50:40.010 यह कहता है, "मैं सोता हूँ लेकिन मेरा दिल जागता है"। शाश्वत अवैयक्तिक चेतना का 00:50:40.010 --> 00:50:47.040 यह अहसास मसीह के शब्दों में दिखाई देता है जब वे कहते हैं 00:50:47.040 --> 00:50:54.360 "इब्राहिम से पहले, मैं हूँ।" 00:50:56.289 --> 00:51:08.820 एक चेतना जो अनगिनत चेहरे, अनगिनत रूपों के माध्यम से चमकती है। 00:51:16.470 --> 00:51:22.640 सबसे पहले यह आपके भीतर ध्रुवीयताओं से पैदा हुई नाजुक लौ की तरह लगती है। 00:51:22.640 --> 00:51:29.160 समर्पण के साथ समाती हुई पुरुषत्व चेतना या स्त्री शक्ति का 00:51:29.160 --> 00:51:36.089 उद्घाटन। यह नाजुक है, और आसानी से खो सकता है, इसकी रक्षा करने के लिए बहुत सावधानी बरतनी चाहिए 00:51:36.089 --> 00:51:40.849 और जब तक यह परिपक्व न हो इसे जीवित रखना चाहिए। 00:51:43.800 --> 00:51:50.850 समाधि साथ ही समयहीन अवस्था है चेतना की एक और अवस्था 00:51:50.850 --> 00:51:58.310 विकास प्रक्रिया को प्रकट करने की। कुछ जैविक और समय के साथ विकसित। 00:52:04.520 --> 00:52:13.990 जैसे-जैसे कोई समाधि में अधिक से अधिक समय बिताता है, वर्तमान में, शाश्वतता में, 00:52:13.990 --> 00:52:22.520 तब वह अधिक से अधिक हृदय, आत्मा से दिशाबोध ग्रहण करता है, और 00:52:22.520 --> 00:52:28.280 अनुकूलित संरचना से कम। 00:52:28.810 --> 00:52:38.410 इस तरह कोई निम्नतर मन से मुक्त हो जाता है। मनोविकार से मुक्त हो जाता है । 00:52:38.410 --> 00:52:45.109 आंतरिक तारों में परिवर्तन आ जाता है। ऊर्जा बहुत देर तक अचेतन रूप से 00:52:45.109 --> 00:52:51.859 पुरानी अनुकूलित संरचनों में नहीं बहती, जोकि यह कहने का एक और तरीका है कि किसी को 00:52:51.859 --> 00:53:09.829 उसकी आत्म संरचना से उसके स्वरूप की बाहरी दुनिया से नहीं पहचाना जाता है। 00:53:10.920 --> 00:53:17.309 समाधि प्राप्त करने के लिए इतनी ज़्यादा कोशिश ज़रूरी है कि यह पूरी तरह आत्मसमर्पण बन जाता है 00:53:17.309 --> 00:53:24.720 स्वयं का, और आत्मसमर्पण ऐसा कि इसमें शामिल हो पूर्ण प्रयास 00:53:24.720 --> 00:53:33.869 किसी के अस्तित्व का ; उसकी सभी ऊर्जा का। यह संतुलन है प्रयास और 00:53:33.869 --> 00:53:41.400 आत्मसमर्पण का, यिन और यांग का। एक तरह का सरल प्रयास। 00:53:47.430 --> 00:53:55.330 भारतीय रहस्यवादी और योगी परमहंस रामकृष्ण ने कहा, "मत खोजो प्रकाश 00:53:55.330 --> 00:54:02.620 जब तक कि आप उसे इस तरह नहीं खोजते जैसे कि बालों में आग लगी हो और जो तालाब की खोज में हो" 00:54:02.620 --> 00:54:06.300 आप इसे अपने पूरे अस्तित्व के साथ खोजते हैं। 00:54:06.360 --> 00:54:12.840 किसी के अहंकार से आगे बढ़ने के दौरान अत्यधिक साहस, सतर्कता और दृढ़ता ज़रूरी है 00:54:12.840 --> 00:54:21.850 भ्रूण को जीवित रखने के लिए। सांसारिक माया जाल में न फँसने के लिए। 00:54:21.850 --> 00:54:28.120 इच्छाशक्ति बेहद जरूरी है प्रवाह के विरुद्ध तैरने के लिए, 00:54:28.120 --> 00:54:35.590 दैहिक साँचे के दबाव और सांसारिक पहिए में पिसने से बचने के लिए। हर सांस 00:54:35.590 --> 00:54:43.870 हर विचार, हर क्रिया स्रोत को हासिल करने के लिए होनी चाहिए। समाधि 00:54:43.870 --> 00:54:51.490 प्रयास से हासिल नहीं होती है और ना ही बिना प्रयास के। प्रयास या बिना प्रयास को जाने दें; यह 00:54:51.490 --> 00:54:59.380 द्वंद्व केवल मन में मौजूद है। समाधि का वास्तविक अहसास इतना सरल 00:54:59.380 --> 00:55:05.440 इतना निर्विवाद है कि इसे हमेशा भाषा के माध्यम से गलत समझा जाता है 00:55:05.440 --> 00:55:12.610 जो स्वाभाविक रूप से द्वंद्वात्मक है। केवल एक प्रायोगिक चेतना है जो 00:55:12.610 --> 00:55:21.160 दुनिया के रूप में जागृत है लेकिन यह मन की कई परतों में अस्पष्ट है। जिस तरह 00:55:21.160 --> 00:55:27.610 सूर्य बादलों के पीछे छिपा हुआ है वैसे ही मन की प्रत्येक परत हटने के बाद व्यक्ति के अस्तित्व का 00:55:27.610 --> 00:55:30.900 सार प्रकट हो जाता है। 00:55:33.180 --> 00:55:39.480 मन की प्रत्येक परत हटने पर, लोग इसे अलग समाधि कहते हैं। वे इसे 00:55:39.480 --> 00:55:45.260 विभिन्न अनुभवों या विभिन्न भौतिक विषयों के नाम देते हैं 00:55:55.010 --> 00:56:00.290 लेकिन समाधि इतनी सरल है कि जब आपको बताया जाता है कि यह क्या है और कैसे हासिल किया जाए 00:56:00.290 --> 00:56:04.600 तो आपका मन हमेशा चूक जाता है। 00:56:05.170 --> 00:56:13.040 दरअसल समाधि सरल या जटिल नहीं है; यह केवल मन है जो इसे 00:56:13.040 --> 00:56:19.850 ऐसा बनाता है। जब कोई मन नहीं होता है तो कोई समस्या नहीं होती है, क्योंकि मन है 00:56:19.850 --> 00:56:28.720 जिसे रोकने की ज़रूरत है इसे प्राप्त करने के लिए। यह कोई घटना तो बिल्कुल नही है। 00:56:36.880 --> 00:56:44.170 समाधि की सबसे संक्षिप्त व्याख्या शायद इस वाक्यांश में है: 00:56:44.170 --> 00:56:55.530 "शांत रहें और जानें।" 00:56:59.190 --> 00:57:05.490 हम स्थिरता को व्यक्त करने के लिए शब्दों और चित्रों का उपयोग कैसे कर सकते हैं? हम शोर के ज़रिये 00:57:05.490 --> 00:57:12.869 शांति कैसे व्यक्त कर सकते हैं? समाधि को एक बौद्धिक सिद्धांत कहने के बजाय, 00:57:12.869 --> 00:57:22.740 यह फिल्म निष्क्रियता का परिवर्तनवादी आह्वान है। यह ध्यान, आंतरिक शांति और 00:57:22.740 --> 00:57:31.010 आंतरिक प्रार्थना के लिए बुलावा है। थमने का आह्वान। 00:57:38.420 --> 00:57:45.140 तर्कहीन अहंकारी मन से संचालित हर चीज को रोक दें। 00:57:46.270 --> 00:57:50.190 स्थिर रहें और जानें। 00:57:54.470 --> 00:57:59.890 स्थिरता से क्या निकलेगा यह आपको कोई भी नहीं बता सकता। 00:57:59.910 --> 00:58:05.720 यह आध्यात्मिक मन से कार्य करने का आह्वान है। 00:58:21.500 --> 00:58:30.050 यह किसी पुराने को याद करने जैसा है। आत्मा जागती है और खुद को याद करती है। 00:58:30.050 --> 00:58:37.260 यह एक नींद में डूबे यात्री की तरह है लेकिन अब खालीपन जाग जाता है और खुद को ही 00:58:37.260 --> 00:58:43.439 सब कुछ मानने लगता है। 00:58:44.390 --> 00:58:50.869 आप सीमित अहंकारी मन से समाधि क्या है इसकी कल्पना नहीं कर सकते बिलकुल उसी तरह जैसे 00:58:50.869 --> 00:58:57.500 आप अंधे इंसान को यह नहीं समझा सकते की रंग क्या है। आपका मन जान नहीं सकता। वह इसे 00:58:57.500 --> 00:59:06.559 बना भी नहीं सकता। समाधि को पाने का मतलब अलग दृष्टिकोण से देखना है, अलग चीज़ों को 00:59:06.559 --> 00:59:12.579 देखना नहीं बल्कि द्रष्टा को पहचानना है। 00:59:15.360 --> 00:59:24.840 असीसी के सेंट फ्रांसिस ने कहा है, "जो आप खोज रहे हैं वही देख रहा है।" आपने अगर एक बार 00:59:24.840 --> 00:59:34.290 चंद्रमा को देखा हो तो उसकी हर परछाई पहचान सकते हैं। सच्चा आत्म 00:59:34.290 --> 00:59:42.920 हमेशा वहीं रहा है, यह हर चीज़ में है, लेकिन आपने इसकी उपस्थिति को महसूस नहीं किया है। 00:59:43.070 --> 00:59:50.750 जब आप मन और इन्द्रियों से परे अपने स्वरूप को पहचानते और उसे मानने लगते हैं 00:59:50.750 --> 01:00:08.530 तो यह मुमकिन है कि आप बेहद मामूली चीज़ों से विस्मय का एहसास करें। हम स्वयं विस्मय बन जाते हैं। 01:00:08.720 --> 01:00:15.530 इच्छाओं से मुक्त होने की कोशिश न करें क्योंकि इच्छाओं से मुक्त होने की इच्छा भी 01:00:15.530 --> 01:00:26.020 एक इच्छा है। आप स्थिर रहने की कोशिश नहीं कर सकते क्योंकि प्रत्येक प्रयास एक गति है। 01:00:26.020 --> 01:00:34.570 उस स्थिरता को समझें जो हमेशा पहले से मौजूद है। 01:00:34.570 --> 01:00:37.570 खुद स्थिर हो जाएँ और जानें 01:00:38.840 --> 01:00:45.140 जब सभी प्राथमिकताएँ त्याग दी जाती हैं, तब पता चलता है स्रोत का, लेकिन स्रोत से भी 01:00:45.140 --> 01:00:57.140 न चिपकें। महान वास्तविकता, ताओ न तो एक है न ही दो। रमण महर्षि ने कहा है 01:00:57.140 --> 01:01:07.580 "आत्मा केवल एक है। यदि यह सीमित है तो यह अहंकार है, और अगर असीमित है तो यह अनंत 01:01:07.580 --> 01:01:20.750 और महान वास्तविकता है।" जो कहा जा रहा है उसे यदि आप मानते हैं तो आपने इसे नहीं समझा है। 01:01:20.750 --> 01:01:27.500 यदि आप नहीं मानते हैं तब भी आपने इसे नहीं समझा है। विश्वास और अविश्वास आपके मन के 01:01:27.500 --> 01:01:34.900 स्तर पर काम करते हैं। उन्हें जानकारी चाहिए, लेकिन यदि आप अपने अस्तित्व की 01:01:34.900 --> 01:01:40.370 तहकीकात करते हुए अपने अस्तित्व के सभी पहलुओं की जाँच करते हैं, यह जानकर कि जाँच 01:01:40.370 --> 01:01:46.340 कौन कर रहा है, अगर आप इस सिद्धांत पर चलना चाहते हैं "मेरी नहीं, ऊपर वाले की मर्ज़ी चलेगी," 01:01:46.340 --> 01:01:53.540 अगर आप सारे ज्ञान से आगे बढ़ना चाहते हैं तब आप वह एहसास समझ पाएंगे 01:01:53.540 --> 01:01:59.600 जिसकी ओर मैं इशारा कर रहा हूँ। तभी आप गूढ़ रहस्य और साधारण अस्तित्व की 01:01:59.600 --> 01:02:07.940 सुंदरता का एहसास कर पाएंगे। 01:02:08.450 --> 01:02:16.070 जीवन की एक और संभावना है। कुछ ऐसा जो पवित्र, समझ से परे है 01:02:16.070 --> 01:02:22.570 जिसे आपके अस्तित्व की शांत गहराइयों में पाया जा सकता है, 01:02:22.570 --> 01:02:33.920 धारणाओं, नीतियों, अनुकूलित गतिविधियों और हर अभिरुचियों से परे। इसे 01:02:33.920 --> 01:02:41.410 तकनीकों, अनुष्ठानों या प्रथाओं से नहीं पाया जा सकता। इसे "कैसे" पाएँ का कोई तरीक़ा नहीं है। 01:02:41.410 --> 01:02:54.140 कोई प्रणाली नहीं है। उपाय का कोई रास्ता नहीं है। जैसा कि ज़ेन में कहा जाता है 01:02:54.140 --> 01:03:01.160 यह जन्म से पहले अपने मूल चेहरे की खोज है। यह खुद को 01:03:01.160 --> 01:03:10.010 निखारने का नाम नहीं है। यह स्वयं प्रकाश बनना है; वह प्रकाश जो आत्मा के 01:03:10.010 --> 01:03:20.210 भ्रम को दूर करता है। जीवन हमेशा अपूर्ण रहेगा 01:03:20.210 --> 01:03:26.920 और हृदय तब तक बेचैन रहेगा जब तक कि यह नाम और रूप से परे के 01:03:26.920 --> 01:03:32.650 रहस्य में राहत न पा जाए। 01:04:04.059 --> 01:04:06.059 [संगीत] ओम् श्रीम् लक्ष्मी