आप कौन बनना चाहते हो ? यह एक आसान सा सवाल है, और आप जानो या नहीं, आप अपने कर्मों से इसका जवाब रोज़ दे रहे हैं। क्योंकि इस एक सवाल पर आपकी व्यवसायी सफलता सबसे ज़्यादा निर्धारित करेगी, क्योंकि आपका दूसरों के साथ व्यवहार बहुत मायने रखता है। या तो आप लोगों का सम्मान करके, उन्हें समझके, उनकी सराहना करके, उनका हौसला बढ़ाते हो, या आप उनका अपमान करके, उनकी उपेक्षा करके उन्हें हतोत्साह करते हो। और आप क्या करते हो वह मायने रखता है। मैंने लोगों पर कटुता के प्रभाव के बारे में पढ़ा। कटुता क्या है? अनादर या असभ्यता। इसमें बहुत तरह के बर्ताव हो सकते हैं, किसी का अपनी बातों से अनादर करना, या उनका इस तरह से मज़ाक उड़ाना जिससे उन्हें ठेस पहुँचे, या सभा में सन्देश लिखना। जो किसी के लिए कटुता हो वह किसी और के लिए बहुत मामूली सी चीज़ हो सकती है। सोचेंगे जब किसी को मिलते वक़्त फोनसे संदेश भेजना । हम में से किसी के लिए वह अशिष्ट होगा, और किसी और के लिए काफ़ी मामूली। तो यह निर्भर करता है। यह सब एक इंसान के नज़रिए पर है कि उसे वह अनादर लगा या नहीं। हम शायद अपनी तरफ़ से किसी को वैसा महसूस न कराना चाहें, लेकिन जब हम करते हैं, उसके भी परिणाम होते हैं। 22 साल से भी पहले, मुझे याद है कि मैं एक अस्पताल के कमरे में गई थी। मैं बहुत दुखी थी क्योंकि मैं अपने जोशीले, मज़बूत, बलवान पिता को बिस्तर पर बुरी मरीज़ों वाली हालत में देख रही थी। उनकी यह हालत काम में तनाव की वजह से थी। पूरे एक दशक के लिए, उनके एक कटु स्वभाव के बॉस थे। और मुझे उस समय इस परिस्तिथि की गंभीरता का ख्याल नहीं था। लेकिन कुछ सालों बाद ही, मैंने खुद कॉलेज के बाद अपनी पहली नौकरी में कटुता का अनुभव किया। पूरे एक साल रोज़ काम पर मुझे अपने सहकर्मियों से सुनना पड़ता कि "तुम बेवकूफ़ हो? ऐसे काम नहीं होता," और, "तुमसे किसी ने नहीं पूछा।" तो फिर मैंने वही किया जो कोई भी करता। नौकरी छोड़कर, वापस कॉलेज जाकर इन सब चीज़ों के प्रभाव पर पढ़ाई की। वहाँ मैं क्रिस्टीन पिअरसन से मिली। और उनका एक सिद्धांत था, कि कैसे छोटे कटु कर्म से क्रोध और हिंसा जैसी बड़ी समस्याएँ भी कड़ी हो सकती हैं। हमारे मानने में कटु बर्ताव का प्रभाव निष्पादन पर हो सकता है। तो हमने इसका अन्वेषण करना शुरू किया, और परिणाम से हमारे आँखें खुल गई। हमने व्यापार पढ़े हुए लोगों को सर्वेक्षण भेजे जो अलग अलग जगहों में काम कर रहे थे। हमने उनके अनुभवों पर कुछ वाक्य लिखने को कहा जहाँ उनके साथ बुरा या असभ्य बर्ताव हुआ, या किसी ने उनका अनादर किया, और कुछ सवाल उस बर्ताव को लेके उनकी प्रतिक्रियाओं पर। किसी ने हमें अपने बॉस के बारे में बताया जो अशिष्ट किस्म की बातें करते जैसे, "यह काम कोई बच्चा भी कर ले," और दूसरे इंसान ने बताया कि उनके बॉस सबके सामने किसी का काम फाड़ देते। हमें पता चला कि कटु बर्ताव लोगों का हौसला और भी कम कर देता है: 66 प्रतिशत लोगों ने काम में मेहनत करना कम कर दिया, 80 प्रतिशत लोग सोच में पड़ जाते कि इन चीज़ों का कारण क्या है, और १२ प्रतिशत लोगों ने नौकरी छोड़ दी। इन परिणाम को छापने के बाद, दो चीज़ें हुई। एक, हमें संगठनों से फोन आने लगे। सिस्को ने हमारे परिणाम पढ़े, उनपर जाँच की और यह पाया कि कटु बर्ताव से उन्हें प्रति वर्ष 1.2 करोड़ डॉलर का नुक्सान हो रहा था। दूसरी चीज़, कि हमें इस क्षेत्र से और लोगों से सुनने को मिला जिन्होंने हमसे पूछा कि सब यह चीज़ें बता तो रहे हैं, लेकिन इसका क्या सबूत है? क्या निष्पादन वाकई ख़राब होता है? मैं भी इस बारे में जानना चाहती थी। मैंने अमिर एरेज़ के साथ, जिन्होंने कटुता का अनुभव किया है, उनके साथ तुलना की जिन्होंने ऐसा अनुभव नहीं किया है। और हमने पाया कि जिन्होंने ऐसा अनुभव किया है उनका निष्पादन वाकई ख़राब हुआ है। आप शायद सोच रहे होंगे "हाँ, यह तो ज़ाहिर सी बात है।" पर क्या अगर आपने कभी ऐसा अनुभव न किया हो? मगर देखा या सुना ज़रूर हो? आप एक गवाह हैं। हमने सोचा कि क्या इसका प्रभाव गवाहों पर भी पड़ सकता है। हमने उस पर भी अन्वेषण किया जहाँ पाँच सहपाठी किसी देर से आने वाले पर प्रयोगकर्ता का दुश्व्यवहार देखते। प्रयोगकर्ता कहते, "तुम कैसे आदमी हो? देर से आते हो, गैरज़िम्मेदार हो। तुम्हें ऐसे में कौन नौकरी पर रखेगा?" और एक छोटे समूह पर अनुसन्धान करने के लिए, हमने एक सहकर्मी के दुश्व्यवहार के प्रभाव पर जाँच की। हमने यह पाया, कि गवाहों का निष्पादन भी ख़राब होने लगा, और थोड़ा नहीं, बहुत ज़्यादा। कटुता एक रोग है। वह फैलता है, और हम उसके आस पास रहकर भी उससे प्रभावित होते हैं। और वह सिर्फ़ काम तक सीमित नहीं है। हमें वह कहीं भी मिल सकता है-- घर पे, ऑनलाइन, स्कूल में, हमारे समुदायों में। वह हमारे जज़्बात, उत्तेजना, निष्पादन और हमारे व्यवहार को भी प्रभावित करता है। वह हमारे ध्यान देने की और सोचने की क्षमता को भी प्रभावित करता है। और यह सिर्फ़ तब नहीं होता जब हम उसे अनुभव करें या उसके गवाही हो। यह तब भी हो सकता है जब हम कोई कटु शब्द देखें या पढ़ें। एक उदहारण देती हूँ। इसकी जाँच करने के लिए हमने कुछ लोगों को एक वाक्य बनाने के लिए चंद शब्द दिए। सब सोच समझकर। आधे सहपाठियों को कटु व्यवहार उकसाने वाले 15 शब्द मिले: अशिष्टता, टोकना, घृणित, परेशान करना। और आधे सहपाठियों को दूसरे शब्दों की सूची मिली जिनमें ऐसे व्यवहार उकसाने वाले शब्द नहीं थे। और हमें कुछ चौकाने वाली चीज़ें समझ आई, क्योंकि जिनको असभ्य किस्म के शब्द मिले उनकी सामने दी हुई जानकारी से ध्यान भटकने की संभावना पाँच गुना ज़्यादा थी। और जैसे जैसे हमने इस विषय पर और जाँच की, हमने पाया कि जो इस तरह के असभ्य शब्दों को पढ़ते उन्हें निर्णय लेने में ज़्यादा समय लगता, और अपने निर्णय समझने में भी, वे ज़्यादा ग़लतियाँ भी करते। यह एक बहुत बड़ी समस्या हो सकती है, खासकर जब जीवन-मृत्यु वाली स्तिथि हो। स्टीव, एक चिकित्सक ने एक डॉक्टर के बारे में बताया जिनके साथ उन्होंने काम किया था जो कि खासकर के अपने से छोटे औदे वाले या नर्सेज़ का कभी अच्छे से आदर न करते। लेकिन स्टीव ने एक विशेष वारदात के बारे में बताया जहाँ इस डॉक्टर ने चिकित्सक समूह पर चिल्लाया। उस बातचीत के बाद ही, उन लोगों ने मरीज़ को ग़लत दवाई दे दी। स्टीव ने कहा कि सही जानकारी बिलकुल उनके सामने चार्ट पर दी गई थी, मगर सब ने किसी तरह से उस पर ठीक से ध्यान नहीं दिया। उन्होंने कहा कि वे अनभिज्ञ और ध्यानहीन से थे। मामूली सी ग़लती थी, है न? लेकिन वह मरीज़, मर गया। इजराइल के शोधकर्ता ने यह बताया है कि ऐसे चिकित्सक समूह जिनके साथ असभ्य बर्ताव होता है, उसका प्रभाव उनके चिकित्सक प्रक्रियाओं पर पड़ता है। यह इसलिए होता था क्योंकि जिन लोगों के साथ ऐसा बर्ताव होता था, वे जानकारी आसानी से न बाँट पाते, और अपने सहपाठियों से मदद लेना भी बंद करते। और मैंने यह सिर्फ़ चिकित्सा के क्षेत्र में ही नहीं, बाकी क्षेत्रों में भी देखा है। अगर कटुता से इतन नुकसान होता है, तो हम ऐसा व्यवहार अब भी क्यों पाते हैं? मैं जिज्ञासु थी तो हमने इस पर भी सर्वेक्षण किया। सबसे पहला कारण है -- तनाव। लोग व्याकुल हो जाते हैं। दूसरा कारण यह है कि लोगों को लगता है कि उन्हें अच्छी तरह से पेश आने पर भी संशयी महसूस होता है। उन्हें लगता है कि ऐसे में वे उतने बड़े लीडर नहीं लगेंगे। उन्हें लगता है: क्या अच्छे आदमी पीछे रह जाते हैं? दूसरे शब्दों में: क्या क्रूर लोग आगे बढ़ जाते हैं? (हँसी) ऐसा सोचना आसान है, खासकर की जब हम ऐसे उदहारण अक्सर देखते हैं। खैर, पत्ते की बात यह है, कि ऐसा सच नहीं है। इस पर मॉर्गन मेककॉल और माइकल लोम्बर्डो द्वारा अन्वेषण किया गया है, जब हम रचनात्मक नेतृत्व केंद्र पर थे। उन्होंने पाया कि असफलता का सबसे बड़ा कारण एक असंवेदनशील, अपघर्षक और अपमानित करने वाला व्यवहार था। ऐसे कुछ चंद लोग होंगे जो इस व्यवहार के बावजूद भी सफल होते होंगे। मगर जल्द नहीं तो बादमें ही, अधिकतम कटु लोग अपनी ही सफलता का नाश कर देते हैं। जैसे कि बुरा व्यवहार करने वालों को इसका सबक तब मिलता है जब वे खुद एक तकलीफ़ से गुज़रते हैं या जब उन्हें किसी की ज़रूरत हो। लोग उनका साथ नहीं देंगे। लेकिन अच्छे लोगों का क्या? क्या अच्छाई भविष्य में मदद करती है? बिकुल करती है। और अच्छे से पेश आने का मतलब यह नहीं कि आप बेकार नहीं हो। किसी को नीचे न लाना और किसी का प्रोत्साहन बढ़ाने में फ़र्क है। सभ्यता से पेश आने का मतलब है वह छोटी छोटी चीज़ें करना, जैसे कि किसी के पास से गुज़रते वक़्त मुस्कुराना और उन्हें हेलो बोलना, जब कोई आपसे बात कर रहा हो तो उसे ध्यान से सुनना। आपके और किसी और के विचारों में अंतर हो सकता है, और आप चीज़ को प्यार से, सम्मान देकर भी व्यक्त कर सकते हैं। कुछ लोग इसको "मौलिक निर्मलता" कहते हैं, जब आप निजी तौर पर परवाह करते हैं, लेकिन सवाल सामने से। तो हाँ, सभ्यता आगे काम आती है। एक जैव प्राद्यौगिकी कंपनी में, मैंने और मेरे सहकर्मियों ने पाया कि जिन लोगों का सभ्य व्यव्हार था उनको लीडर की तरह देखने की संभावना दो गुना ज़्यादा थी, और उनका निष्पादन भी बेहतर था। सभ्यता क्यों काम आती है? क्योंकि लोग आपको महत्वपूर्ण और-- प्रभावशाली-- दो अनोखी विशेषताओं के मेल से देखते हैं: नरम दिल और सक्षम, अनुकूल और होशियार। दूसरे शब्दों में, सभ्य होना सिर्फ़ दूसरों का प्रोत्साहन बढ़ाना नहीं है। यह आपके बारे में है। अगर आप अच्छे हैं, आपको लीडर की तरह देखा जाने की संभावना ज़्यादा है। आप काम अच्छे से करेंगे, और दूसरों की नज़रों में आप नरम दिल और सक्षम माने जाएँगे। लेकिन अच्छाई कैसे काम आएगी इसके पीछे और एक कहानी है, और यह नेतृत्व के बारे में एक बहुत एहेम सवाल खड़ा करती है: लोग अपने लीडर से सबसे ज़्यादा क्या चाहते हैं? हमने पूरे दुनिया भर से 20,000 कर्मचारियों का डेटा लिया, और जवाब आसान सा था: सम्मान। सम्मानित रूप का व्यवहार मिलना तरक्की और मान्यता, उपयोगी प्रतिक्रिया और सीखने के मौकों से ज़्यादा मायने रखता था। जिन्हें सम्मानित महसूस होता था वे ज़्यादा स्वस्थ होते, ध्यान केन्द्रित होते, संगठन के साथ रहने की अधिक संभावना रखते, और ज़्यादा प्रवृत्त रहते। तो शुरुआत कहाँ से की जाए? कैसे आप लोगों को प्रोत्साहित कर सकते हैं और उनका सम्मान बढ़ा सकते हैं? सबसे अच्छी बात यह है, कि इसमें बहुत मेहनत नहीं लगती। छोटी चीज़ों से भी बहुत फ़र्क पड़ता है। लोगों का शुक्रिया अदा करने से, उन्हें श्रेय देने से, ध्यान से सुनने से, विनम्रतापूर्वक सवाल पूछने से, दूसरों को देखकर मुस्कुराने से अच्छा प्रभाव पड़ता है। पैट्रिक क़ुइन्लेन, ओश्नर हेल्थ [सिस्टम] के पुराने सीईओ ने मुझे उनके 10-5 तरीके के प्रभाव बताए, कि अगर आप किसी से 10 फुट के दूरी के अंदर खड़े हैं, आप उनकी आँखों में देखिए और मुस्कुराइए, और अगर पाँच फुट के अंदर, तो उन्हें हेलो बोलिए। उन्होंने बताया कि सभ्यता का प्रभाव फैला, मरीजों की संतुष्टता बढ़ी, और वे औरों को भी उनके बारे में बताते। सभ्यता और सम्मान से एक संगठन के निष्पादन में उन्नति होती है। जब मेरे दोस्त डग कोनेंट कैम्पबेल्स सूप कंपनी के 2001 में सीईओ बने, कंपनी की बाज़ारी हिस्सेदारी आधे में घट गई थी। बिक्री गिर रही थी, और बहुत से लोगों को निकला गया था। एक गैल्ल्प प्रबंधक ने कहा कि यह सबसे कम प्रवृत्त संगठन था जिनका उन्होंने सर्वेक्षण किया था। डग के पहले दिन पर उन्होंने देखा कि कंपनी का मुख्यालय तारों से घिरा हुआ था। पार्किंग एरिया में गार्ड टावर थे। उन्होंने कहा कि पूरी जगह जेल जैसी लग रही थी। विशालु सा लग रहा था। पाँच साल के अंदर डग ने सब कुछ बदल दिया। और नौ सालों के अंदर वे नए रिकॉर्ड बनाने लगे। उन्हें काम करने के लिए सर्वोत्तम जगह होने के लिए, और अन्य पुरुस्कार मिले। उन्होंने वह कैसे किया? एक दिन डग ने कर्मचारियों को कहा कि निष्पादन के लिए वे उच्च मानक रखने वाले थे, लेकिन वह सभ्यता से करना ज़रूरी था। उन्होंने वह करके दिखाया, और सबसे अपेक्षा भी रखी। डग के लिए वे मानकों में दृढ़ होते मगर लोगों के साथ नरम दिल। उनके लिए यह रोज़ की बातों में होता, या कर्मचारियों के साथ रोज़ की बातचीत में, जो कि रास्ते में जाते हुए हो, या भोजनालय, या मीटिंग में। और जब वे इन सब में सफल होते, कर्मचारियों को अपना मूल्यवान महसूस होता। एक दूसरा तरीका जिससे वे कर्मचारियों को मूल्यवान महसूस करवाते और यह दिखाते की वे उनपर ध्यान देते हैं यह था कि उन्होंने कर्मचारियों 30,000 से ज़्यादा हस्तलिखित पत्र भेजे। और यह दूसरों के लिए उदहारण बन गया। लीडर के पास रोज़ ऐसे 400 मौके होते हैं। और कुछ अच्छा करने में अधिकतर दो मिनट से ज़्यादा नहीं लगते। इन क्षणों में बस गौर करना ज़रूरी है। सभ्यता से लोग प्रोत्साहित होते हैं। सभ्य होने से हम लोगों के निष्पादन में उन्नति होने का मौका देते हैं। कटुता से लोगों के निष्पादन में कमी होने लगती है, अगर लोग़ कुछ बेहतरीन करना भी चाहें तो भी कटुता उनकी क्षमता में बाधा डालती है। अनुसंधान करने से मुझे पता चला है कि जब हमारे पास ज़्यादा सभ्य माहोल होते हैं, हम ज़्यादा उत्पादक, रचनात्कम, सहायक, खुश और स्वस्थ रहते हैं। हम और बेहतर कर सकते हैं। हम दिमाग से और भी तेज़ हो सकते हैं, और हमारे कर्म ऐसे हो सकते हैं जो दूसरों को काम में, घर में, ऑनलाइन, स्कूल में, समुदायों में प्रोत्साहित कर सकते हैं। हर बातचीत करते हुए, सोचिए: आप क्या बनना चाहते हैं? आइए, हम इस कटुता के रोग को हटाएँ, और सभ्यता को फैलाएँ। क्योंकि, यह मायने रखता है। धन्यवाद। (तालियाँ)