मैं कभी उस अनुभूति को भूल नहीं पाऊँगी
जो मुझे तब हुई जब समुद्र पहली बार देखा
और नाव पर पहली बार पाँव रखा।
और उस चार साल की बच्ची के लिए,
वह उस स्वतन्त्रता की महानतम भावना थी
जिसकी कल्पना कर सकती थी।
उसी उम्र से, मुझे लगा,
मैं किसी प्रकार, सागर में नाव से
दुनिया का चक्कर लगाना चाहूंगी।
जब आप उन यात्राओं पर जाते हैं,
आपको पता होता है कि आप जीवित रहने के लिए
सब कुछ ले कर जाते हैं।
आपके पास जो होता है बस वही होता है।
आपको डीज़ल की आखिरी बूंद
और खाने के अंतिम पैकेट तक से
काम चलाना होता है।
यह बिलकुल अनिवार्य है
वरना आप कर ही नहीं पाएंगे।
और फिर एकाएक एहसास हुआ,
"फिर हमारी दुनिया इससे फ़र्क क्यों है?
पता है न, हमारे पास सीमित संसाधन हैं,
जो हमें मानवता के इतिहास में
केवल एक बार उपलब्ध होते हैं।
जैसे कि धातुएँ, प्लास्टिक, फ़र्टिलाइजर्स।
हम इन सबका खनन कर रहे हैं,
और इन्हें इस्तेमाल कर ले रहे हैं।
दीर्घकाल में इससे काम कैसे चलेगा?
बेशक दुनिया के इन संसाधनों के इस्तेमाल का
कोई दूसरा तरीका ज़रूर होगा
जिससे इस्तेमाल करें ख़त्म नहीं।
मेरे मन में यही सवाल था,
और मुझे वहाँ तक पहुँचने में बहुत समय लगा
जहां मैंने समझा कि अर्थव्यवस्था
चलाने का दूसरा तरीका भी है,
सामान का, चीज़ों के इस्तेमाल का
दूसरा तरीका संभव है।
और वह है चक्रीय अर्थव्यवस्था।
आज अर्थव्यवस्था जैसे काम करती है
वह बहुत निष्कर्षी है।
वह रेखीय है।
हम कोई चीज़ ज़मीन से खोद कर निकालते हैं,
उससे कोई और चीज़ बनाते हैं,
और उस उत्पाद के जीवन के अंत में,
हम उसे फेंक देते हैं।
आप सिस्टम में सामग्री डालने में
चाहे जितने भी निपुण हों,
आप शायद थोड़ी कम ऊर्जा
या सामग्री इस्तेमाल कर
उत्पाद का निर्माण करते हों,
तब भी अंत में तो वह समाप्त हो जाएगी।
अगर आप इसे उलट दें
और चक्रीय मॉडेल को देखें,
जहां जब आप उत्पाद को डिज़ाइन करते हैं,
आप धरती से खोद कर कुछ निकालते हैं,
या आदर्श रूप से, रीसाइकल सामग्री लेते हैं,
जिससे उत्पाद बनाते हैं,
मगर ऐसे डिज़ाइन करते हैं
जिससे उत्पाद से डिज़ाइन द्वारा
सामग्री वापस निकाल सकें, शुरू से ही।
अपशिष्ट और प्रदूषण निकालना
डिज़ाइन करते हैं।
वरना सीमित संसाधनों की दुनिया में
आप कुछ भी वरना बनाएँगे ही क्यों?
बात डिज़ाइन ब्रीफ़ की है।
आज, अगर आप वॉशिंग मशीन ख़रीदते हैं,
उसे ख़रीदने पर आप टैक्स देते हैं,
आप उसके अंदर की हर चीज़ के स्वामी हैं,
और फिर वह खराब हो जाती है,
जो कि उसको होना ही है,
आप फिर टैक्स देते हैं, लैंडफ़िल टैक्स।
चक्रीय प्रणाली में यह सब बदल जाएगा।
मशीन के स्वामी नहीं,
हर धुलाई का दाम है,
मशीन निर्माता द्वारा
उसकी बेहतर देखभाल होगी,
और वे सुनिश्चित करेंगे
कि जब मशीन का जीवन समाप्त होता है,
उसे वापस लेते हैं, जानते हैं
उसमें क्या है,
और वे उसमें से वह सामान निकाल सकते हैं।
तो डिज़ाइन से
चक्रीय प्रणाली में पहुँचते हैं।
हमने सम्बद्ध आंकड़ों का
गहराई से अध्ययन किया है,
अर्थात उसका अर्थशास्त्र,
और वह बहुत सस्ता पड़ता है।
प्रति धुलाई 27 यूएस सेंट्स के बदले
12 यूएस सेंट्स होता है
जब चक्रीय मशीन ली जाती है।
हम एक ऐसी प्रणाली में रहेंगे
जो काम करती है।
हम अपशिष्ट का निर्माण नहीं कर रहे होंगे।
हमें बेहतर सर्विस मिलेगी।
हमारी पहुँच बेहतर टेक्नॉलॉजी तक होगी।
अभी तक हमने जो अध्ययन किए हैं,
चूंकि वे निर्माता उन सभी चीज़ों को
खरीद नहीं रहे होंगे,
जिन्हें बेच रहे हैं,
सामान कम कीमत पर मिलेगा,
क्योंकि उन्हें गारंटी होगी कि उनका सामान
वापस प्रणाली में ही पहुंचेगा।
मैं बहुत आशावादी हूँ
क्योंकि जब आप आंकड़ों को देखेंगे,
जब आप इसके पीछे के अर्थशास्त्र को देखेंगे,
तब लगेगा चक्रीय अर्थव्यवस्था
में जाना बुद्धिमत्ता है।
चक्रीय अर्थव्यवस्था में रेखीय
अर्थव्यवस्था की तुलना में अधिक मूल्य है।
बड़े संस्थानों के लिए इस तरह के बदलाव में
बेशक कुछ कीमत देनी होगी,
मगर शायद आपको खुद से एक सवाल पूछना होगा:
रेखीय में जोखिम क्या है?
क्योंकि मेरे अनुसार, जवाब आसान है।
रेखीय में बड़ा जोखिम है।
सरल अर्थव्यवस्था पर आधारित
भविष्य तो हो ही नहीं सकता।
तो, दरअसल, आप अपना समय कहाँ लगाएंगे?
आप अपने प्रयास कहाँ लगाएंगे?
चलिये देखते हैं कि चक्रीय दिखती कैसी है
और उस चक्रीय व्यवस्था को यथासंभव
चित्रित करने की कोशिश करें।
मौरिसिओ काकुई तनाका द्वारा उपशीर्षक
जेनी लैम चौधरी द्वारा समीक्षा