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फ़र्ज़ी ख़बरें कोई नई चीज़ नहीं हैं।
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मगर सोशल मीडिया के ज़रिये जाली ख़बरें
अधिक लोगों तक अधिक तेज़ी से पहुँच सकती हैं
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अतीत में प्रचलित उस पुराने फ़ैशन के
वाइरल ईमेल की तुलना में।
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ऐसे अनेक वाइरल दावे हैं जो वास्तव में
समाचार हैं ही नहीं,
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बल्कि कल्पना, व्यंग्य,
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और पाठकों को मूर्ख बना उनको
वास्तविक समझवाने की कोशिश हैं।
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यहाँ पर आपको फ़र्ज़ी ख़बरों से
बचाने के लिए कुछ रणनीतियाँ हैं।
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क्या आप स्त्रोत से परिचित हैं?
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क्या वह वैध है?
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क्या वह अतीत में विश्वसनीय रहा है?
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नहीं, तब शायद उसका विश्वास
नहीं करना चाहेंगे।
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अगर उकसाने वाली हेडलाइन
आपका ध्यान खींचती है,
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तब वह चौंकाने वाली जानकारी
आगे बढ़ाने से पहले थोड़ा आगे पढ़िये।
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यहाँ तक कि वैध समाचारों में भी,
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हेडलाइनें हमेशा पूरी कहानी नहीं कहती हैं।
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मगर फ़र्ज़ी ख़बर में,
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विशेषकर जिसमें व्यंग्य का प्रयास होता है,
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उसमें टेक्स्ट में ही खुलासे के संकेत
संभव हैं।
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एक फ़र्ज़ी ख़बर में तो एक उद्धरण के लिए
ल्फ़िन को श्रेय दिया गया था।
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अगर वास्तविक होते, आप तर्क कह सकते थे
ज़रूरी बात छुपा ली गई।
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अक्सर फ़र्ज़ी ख़बर का
एक और स्पष्ट संकेत होता है लेखक का नाम,
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अगर दिया हो तब।
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और कुछ मामलों में,
लेखक वास्तविक होते भी नहीं।
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एक स्टोरी का श्रेय
एक "डॉक्टर" को दिया गया था
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जिसने "14 पीबॉडी पुरस्कार तथा
अनेक पुलिट्ज़र पुरस्कार पाये थे,"
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जो बहुत प्रभावी होता
अगर वह पूरी तरह से झूठ नहीं होता।
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अनेक बार इन झूठी कहानियों में आधिकारिक
या आधिकारिक जैसे स्त्रोत उद्धृत होते हैं,
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मगर जब आप उनको देखेंगे,
तब स्त्रोत इस दावे की पुष्टि नहीं करते।
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कुछ झूठी कहानियाँ
बिलकुल ही फ़र्ज़ी नहीं होती हैं,
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बल्कि असली घटनाओं का विकृत रूप होती हैं।
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ये झूठे दावे एक वैध समाचार को ले कर
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उसे तोड़मरोड़ सकती हैं,
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या यह दावा कर सकते हैं
ऐसा कुछ जो बहुत पहले हुआ था
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उसका वर्तमान घटनाओं से
संबंध है।
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एक भ्रामक वेबसाइट ने सीएनएन से
एक साल पुरानी एक कहानी ली
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और एक नई बहकाने वाली हेडलाइन
तथा प्रकाशन की तिथि डाल दी।
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तो, बहकाने के साथ ही
यह कॉपीराइट का उल्लंघन भी है।
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याद रखिए, व्यंग्य जैसी चीज़ होती है।
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सामान्यतः, उसे इसी तरह लेबल करते हैं
और कभी तो हास्यास्पद भी होती है।
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मगर वह समाचार नहीं है।
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और फिर अधिक विवादास्पद व्यंग्य
भी होते हैं,
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जो पाठक को छलने के लिए होते हैं।
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ये भी क्लिक्स प्रोत्साहित करने को
डिज़ाइन होते हैं,
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और निर्माता के लिए विज्ञापन
से आय का साधन होते हैं।
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मगर वे समाचार नहीं हैं।
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हमें पता है कि यह कठिन है।
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पुष्टिकरण के प्रति पूर्वाग्रह लोगों को
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उन ख़बरों पर अधिक वज़न दिलवाता है
जो उनके विश्वास की पुष्टि करती हैं
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और उन्हें डिस्काउंट जो नहीं करतीं।
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