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Samadhi Part 1 - "Maya, the Illusion of the Self"

  • 1:14 - 1:25
    समाधि
  • 1:25 - 1:31
    एक प्राचीन संस्कृत शब्द है, जिसके बराबर
    कोई आधुनिक शब्द नहीं है।
  • 1:31 - 1:38
    समाधि के बारे में फिल्म बनाना
    एक महत्वपूर्ण चुनौती है।
  • 1:38 - 1:54
    समाधि उस चीज के बारे में बताती है
    जिसे दिमागी स्तर पर नहीं बताया जा सकता है।
  • 1:54 - 2:00
    यह फिल्म मेरी अंदरूनी यात्रा की
    बाहरी अभिव्यक्ति है।
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    इसका उद्देश्य आपको समाधि के बारे में बताना और
    आपके मस्तिष्क के लिए जानकारी देना नहीं, बल्कि
  • 2:07 - 2:17
    आपको अपने सही व्यक्तित्व की खोज करने के लिए
    प्रेरित करना है।
  • 2:17 - 2:29
    समाधि अब पहले से कहीं ज़्यादा प्रासंगिक है।
  • 2:29 - 2:35
    हम इतिहास के उस दौर में है जहाँ हमने न केवल समाधि को
    भुला दिया, बल्कि हमने उसे भुला दिया
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    जो हम भूल चुके हैं।
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    यही भूलना माया है, आत्म का भ्रम।
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    मनुष्य के तौर पर हम अपनी रोजाना की जिंदगी में
    डूबे रहते हैं, यह भूल कर कि हम कौन हैं
  • 3:34 - 3:42
    हम यहाँ क्यों हैं, या हम कहाँ जा रहे हैं।
  • 3:42 - 3:50
    हम में से ज्यादातर ने अपनी आत्मा या फिर
    बुद्ध ने जिसे श्रेष्ठ कहा, उसे जाना ही नहीं |
  • 3:50 - 3:57
    - वह जो नाम, रूप और
    सोच से परे है।
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    नतीजतन हम यह मानते हैं कि
    हम ये सीमित तत्व हैं।
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    हम होश में या बेहोशी में, इस डर के साथ जीते हैं
    कि जिस सीमित संरचना में हमें जाना जाता है
  • 4:11 - 4:26
    वह मृत हो जाएगा।
  • 4:26 - 4:31
    आज की दुनिया के ज्यादातर लोग
    जो आध्यात्मिक और धार्मिक कर्म करते हैं
  • 4:31 - 4:40
    जैसे कि योग, प्रार्थना, ध्यान, भजन या
    किसी भी तरह की पूजा करते हैं वे
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    ऐसी तकनीकों का अभ्यास करते हैं जो अनुकूल हैं।
  • 4:42 - 4:50
    मतलब वे केवल हमारे
    अहंकार निर्माण का हिस्सा हैं।
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    अन्वेषण और गतिविधि समस्या नहीं है-
    यह सोचना समस्या है कि आपको किसी
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    बाहरी स्वरूप में समाधान मिल गया है।
  • 5:01 - 5:07
    अध्यात्म अपने सामान्य रूप में उस
    तर्कहीन सोच से बिल्कुल भी अलग नहीं है
  • 5:07 - 5:11
    जोकि चारों ओर प्रचलित है।
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    यह दिमाग की एक और खलबली है।
  • 5:14 - 5:19
    यह मनुष्य के होने से ज़्यादा मनुष्य के करने से जुड़ा है।
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    अहंकार विधान अधिक पैसा, अधिक शक्ति,
    अधिक प्रेम, सब कुछ अधिक चाहता है।
  • 5:29 - 5:38
    तथाकथित आध्यात्मिक मार्ग के राही चाहते हैं कि
    वे अधिक आध्यात्मिक, अधिक जागृत, अधिक समृद्ध
  • 5:38 - 5:43
    अधिक शांतिपूर्ण, अधिक स्थितप्रज्ञ बनें।
  • 5:43 - 5:53
    इस फिल्म को देखने का खतरा यह है कि
    आपका दिमाग समाधि पाना चाहेगा।
  • 5:53 - 6:01
    इससे अधिक खतरनाक है कि आपका दिमाग
    सोच सकता है कि उसने समाधि प्राप्त कर ली है।
  • 6:01 - 6:06
    जब भी कुछ पाने की इच्छा होती है तो
    आप यह समझ जाएं कि यह अहंकार निर्माण है
  • 6:06 - 6:08
    जो कार्यरत है।
  • 6:08 - 6:18
    समाधि कुछ पाने या अपने में
    कुछ और जोड़ने का नाम नहीं है।
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    समाधि हासिल करना मरने से पहले
    मरना सीखना है।
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    जीवन और मृत्यु यिन और यांग की तरह हैं - एक
    अविभाज्य प्रवाह।
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    अंतहीन खुलासा, बिना किसी शुरुआत और अंत के।
  • 6:37 - 6:43
    जब हम मौत को दूर ढकेलते हैं
    तो हम जीवन को भी धक्का देते हैं।
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    जब आप यह सच्चाई जान लेते हैं कि आप कौन हैं
    तब न जीवन के लिए कोई डर रह जाता है
  • 6:49 - 6:51
    ना मृत्यु के लिए।
  • 6:51 - 7:00
    हम कौन हैं यह हमें हमारा समाज और हमारी संस्कृति
    बताती है, और साथ ही हम अपनी अंदरूनी
  • 7:00 - 7:13
    उन शारीरिक इच्छाओं और भटकाव के गुलाम होते हैं
    जो हमारी पसंद को नियंत्रित करते हैं
  • 7:13 - 7:16
    अहंकार निर्माण दोहराव की कोशिश से बढ़कर
    कुछ नहीं।
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    यह बस वो एक रास्ता है जिसे कार्य-शक्ति ने चुना था
    और शक्ति की उस रास्ते पर दोबारा
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    चलने की आदत है, वह चाहे जीव के लिए
    सही हो या गलत।
  • 7:33 - 7:40
    दिमाग या याददाश्त के कई स्तर होते हैं,
    सर्पिल चक्र के अंदर चक्र।
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    जब आपकी समझ आपके मन और आपके अहंकार से
    मेल खाती है तो यह आपको सामाजिक व्यवस्था से
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    बांध देती है जिसे आप मैट्रिक्स भी कह सकते हैं।
  • 7:55 - 8:01
    अहंकार के कई पहलुओं के बारे में
    हम सचेत रह सकते हैं, लेकिन यह बेसुधी,
  • 8:01 - 8:13
    आदिम बंधन, पुराने डर हैं जो दरअसल
    पूरे यंत्र को चला रहे हैं।
  • 8:13 - 8:19
    खुशी की ओर बढ़ने वाले और दर्द से दूर
    भागने वाले तमाम तरीके रोगियों जैसे
  • 8:19 - 8:31
    व्यवहार में बदल जाते हैं .... हमारा काम ....
    हमारे रिश्ते .... हमारी मान्यताएं
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    हमारी सोच और हमारा जीवन जीने का पूरा तरीका।
  • 8:37 - 9:08
    ज्यादातर लोग, मैट्रिक्स में अपना जीवन उलझा कर
    भेड़ बकरियों की तरह बेकार का जीवन जीते और मरते हैं।
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    हम बहुत ही संकीर्ण तरीकों में बंद होकर जीवन जीते हैं।
  • 9:12 - 9:17
    जीवन अक्सर जो बेहद दर्द से भरा होता है और
    हमें यह तक महसूस नहीं होता कि हम
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    आजाद भी हो सकते हैं।
  • 9:26 - 9:34
    अतीत से प्राप्त विरासती जीवन को छोड़ा जा सकता है,
    उस जीवन को जीने के लिए
  • 9:34 - 10:08
    जो अंदरूनी दुनिया से बाहर आना चाहता है ।
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    हम सबने इस संसार में जैविक सीमित संरचना के साथ
    जन्म लिया है, लेकिन बिना अपने बारे में जाने।
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    अक्सर जब आप किसी छोटे बच्चे की आंखों में देखते हैं, तो वहां
    व्यक्तित्व का कोई निशान नहीं होता, बल्कि जगमग खालीपन होता है।
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    जिस व्यक्ति में वह तब्दील होता है,
    वह चेतना पर पहना मुखौटा है।
  • 10:37 - 10:54
    शेक्सपियर ने कहा था, "सारी दुनिया एक मंच है,
    और सभी पुरुष और महिलाएं केवल कलाकार हैं"।
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    एक जागृत व्यक्ति में, चेतना उसके व्यक्तित्व
    और उसके मुखौटे के माध्यम से चमकती है ।
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    जब आप जागृत होते हैं, तब आप
    अपने किरदार से नहीं पहचाने जाते।
  • 11:09 - 11:17
    आप यह मानते ही नहीं कि आप
    वह मुखौटा हैं जो आपने पहन रखा है।
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    लेकिन आप भूमिका निभाने से पीछे भी नहीं हटते।
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    जब हम अपने चरित्र और अपने व्यक्तित्व से पहचाने जाते हैं
  • 11:47 - 11:53
    तो यही माया है, स्वयं का भ्रम।
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    जीवन रूपी नाटक में अपने किरदार के सपने से जागना समाधि है।
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    प्लेटो के गणतंत्र लिखने के चौबीस सौ साल बाद भी,
    मानवता अभी भी प्लेटो की गुफा से
  • 12:19 - 12:25
    बाहर निकल रही है।
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    दरअसल अब हम भ्रम को पहले से भी ज्यादा मानने लगे हैं।
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    प्लेटो ने सुकरात से लोगों के उस समूह की व्याख्या चाही
    जो जीवन भर गुफा में ज़ंजीर से बंधे हुए जी रहे थे,
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    एक खाली दीवार का सामना करते हुए।
  • 12:44 - 12:50
    वे बस चीजों की दीवार पर पड़ने वाली उन परछाई को ही
    देख सकते थे जो उनके पीछे रखी
  • 12:50 - 12:53
    आग की वजह से बनती थी।
  • 12:53 - 12:57
    कठपुतलियों का यह तमाशा ही उनकी दुनिया थी।
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    सुकरात के अनुसार ये परछाइयां ही
    कैदियों की दुनिया की
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    वास्तविकता थी।
  • 13:11 - 13:16
    बाहरी दुनिया के बारे में बताए जाने के बावजूद
    वे यह मानते रहे की परछाइयां ही
  • 13:16 - 13:19
    सब कुछ है।
  • 13:19 - 13:24
    इस संदेह के बावजूद कि इसके अलावा भी कुछ और है
    वे उसे छोड़ने को तैयार नहीं थे जिसे वे
  • 13:24 - 13:36
    जानते थे।
  • 13:36 - 13:41
    मानवता आज उन लोगों की तरह है जिन्होंने
    सिर्फ गुफा की दीवारों पर परछाइयां ही देखी हैं
  • 13:41 - 13:44
    परछाइयां हमारे विचारों की तरह है।
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    सोच की दुनिया ही एकमात्र दुनिया है
    जिसे हम जानते हैं।
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    लेकिन एक और दुनिया है जो
    सोच से परे है।
  • 13:52 - 13:55
    द्वैतवादी मन से परे।
  • 13:55 - 14:03
    क्या आप गुफा छोड़ने के लिए तैयार हैं, उस सच्चाई को
    जानने के लिए सबकुछ छोड़ने को तैयार हैं
  • 14:03 - 14:16
    कि आप कौन हैं?
  • 14:16 - 14:22
    समाधि अनुभव करने के लिए जरूरी है कि
    आप परछाइयों से दूर हो जाएं,
  • 14:22 - 14:26
    विचारों से दूर उजाले की ओर।
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    जब किसी व्यक्ति को अंधेरे की आदत होती है
    तब उसे धीरे-धीरे आदी बनना पड़ता है
  • 14:41 - 14:49
    उजाले का।
  • 14:49 - 14:55
    नए परिवेश में रहने की आदत डालने के लिए,
    समय और प्रयास की ज़रूरत होती है, और चाहिए
  • 14:55 - 15:17
    नए को ढूंढने और पुराने को भुलाने की इच्छाशक्ति।
  • 15:17 - 15:30
    दिमाग की तुलना चेतना के जाल, भूलभुलैया
    या जेल से की जा सकती है।
  • 15:30 - 15:40
    ऐसा नहीं है कि आप जेल में हैं, बल्कि आप स्वयं जेल हैं।
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    जेल एक भ्रम है।
  • 15:48 - 15:54
    यदि आपकी पहचान एक छलावे वाले व्यक्ति के
    रूप में होती है तो आप सोये हुए हैं।
  • 15:54 - 15:59
    आपको जब जेल के बारे में पता हो, और आप भ्रम से
    बाहर आने के लिए लड़ रहे हों, तब आप भ्रम को
  • 15:59 - 16:07
    सच मान रहे होते हैं और सोये हुए होते हैं,
    बस इस बार आपका स्वप्न एक
  • 16:07 - 16:08
    दुःस्वप्न बन जाता है।
  • 16:08 - 16:19
    आप हमेशा परछाई का पीछा करते
    और उससे भागते रहेंगे।
  • 16:19 - 16:27
    समाधि अपने अलग अस्तित्व या अहंकार निर्माण के
    सपने से जागने का नाम है।
  • 16:27 - 16:39
    समाधि उस जेल की पहचान से निकलने का नाम है
    जिसे 'मैं' कहना चाहूँगा।
  • 16:39 - 16:48
    आप वास्तव में कभी भी मुक्त नहीं हो सकते हैं,
    क्योंकि जहां भी आप जाते हैं वहीं जेल होती है।
  • 16:48 - 16:54
    जागरूकता दिमाग या मैट्रिक्स से छुटकारा पाने का नाम नहीं,
    बल्कि, इसके विपरीत जब आप उससे पहचाने नहीं जाते,
  • 16:54 - 16:59
    तब आप जीवन के खेल का आनंद अच्छे से ले पाएंगे,
    बिना किसी लालसा या डर के
  • 16:59 - 17:04
    पूरी लीला का आनंद जस के तस लेते हुए।
  • 17:04 - 17:10
    प्राचीन शिक्षा में इसे लीला का दिव्य खेल कहा जाता था: द्वन्द्व में
  • 17:10 - 17:22
    जीने का खेल
  • 17:22 - 17:26
    मानव चेतना एक निरंतरता है।
  • 17:26 - 17:31
    एक छोर पर, मनुष्यों की पहचान भौतिक आत्म से होती है।
  • 17:31 - 17:38
    दूसरे छोर पर है समाधि, आत्म का अंत।
  • 17:38 - 17:46
    समाधि की ओर ले जाने वाले अंतहीन रास्ते का हर कदम,
    पीड़ा को कम कर देता है।
  • 17:46 - 17:52
    कम पीड़ा का मतलब यह नहीं है कि
    जीवन दर्द से मुक्त है।
  • 17:52 - 17:59
    समाधि दर्द और खुशी के द्वंद्व से
    आगे की बात है।
  • 17:59 - 18:04
    इसका मतलब है कि जो भी खुलासा होता है
    उस पर कम ध्यान और स्वतः निर्मित कम प्रतिरोध
  • 18:04 - 18:22
    और यह प्रतिरोध ही है जो
    पीड़ा को जन्म देता है।
  • 18:22 - 18:28
    एक बार समाधिस्थ होना भी आपको अंतहीन विस्तार के
    दूसरे छोर पर क्या है, यह देखने देती है।
  • 18:28 - 18:35
    यह देखना कि भौतिक संसार और खुदगर्जी के अलावा
    कुछ और भी है।
  • 18:35 - 18:41
    समाधि में जब अपने स्वरूप का वास्तविक अंत होता है
    तो कोई अहंकारी विचार नहीं रह जाता,
  • 18:41 - 18:51
    न कोई आत्म, न द्वंद्व लेकिन फिर भी रहता है
    मैं हूँ, श्रेष्ठ या अस्मिता।
  • 18:51 - 19:01
    उस खालीपन में ही शुरुआत होती है प्रज्ञा या
    बुद्धिमता की- यह सोच कि अंतर्भूत आत्म
  • 19:01 - 19:11
    द्वन्द्वात्मक खेल और सारी निरंतरता से परे है।
  • 19:11 - 19:18
    अंतर्भूत आत्म कालातीत, अपरिवर्तनीय,
    हमेशा वर्तमान होता है।
  • 19:18 - 19:25
    ज्ञानोदय, मूल सर्पिल चक्र, हमेशा बदलती दुनिया
    या उस कमल में विलय का नाम है
  • 19:25 - 19:34
    जिसमें समय आपके शाश्वत अस्तित्व में प्रकट होता है।
  • 19:34 - 19:42
    जब आप आत्म से पहचान हटा लेते हैं तो आपके अंदरूनी तार
    हमेशा खिलने वाले फूल की तरह खिलते हैं और
  • 19:42 - 20:10
    समय की दुनिया और अनंत के बीच
    एक जीवित पुल बन जाते हैं।
  • 20:10 - 20:15
    अंतरात्मा को समझना केवल
    पथ की शुरुआत भर है।
  • 20:15 - 20:21
    ध्यानमग्न होते समय ज्यादातर लोगों को अनगिनत बार
    समाधि में जाने और उसके भंग होने का एहसास होगा
  • 20:21 - 20:25
    तब जाकर वे इसे जीवन के अन्य पहलुओं में जोड़ पाएंगे।
  • 20:25 - 20:32
    ध्यान या आत्म मंथन के दौरान अपने
    अस्तित्व की प्रकृति के बारे में गहन अंतर्दृष्टि
  • 20:32 - 20:40
    असामान्य बात नहीं है और आप
    फिर से पुराने रंग में ढल जाते हैं,
  • 20:40 - 20:54
    इस सच्चाई को भुलाकर कि आप कौन हैं।
  • 20:54 - 21:01
    जीवन के हर पहलू, अपने अस्तित्व के
    हर पहलू में स्थिरता या खालीपन को
  • 21:01 - 21:24
    समझने का मतलब, खालीपन का
    हरेक चीज़ के रूप में नर्तन।
  • 21:24 - 21:28
    स्थिरता गति से अलग नहीं है।
  • 21:28 - 21:31
    यह गति के विपरीत नहीं है।
  • 21:31 - 21:42
    समाधि में स्थिरता को गति के बराबर माना जाता है,
    आकार खालीपन के समान है।
  • 21:42 - 22:02
    यह मन के लिए बेतुका है क्योंकि
    मन का अर्थ है द्वंद का अस्तित्व में आना।
  • 22:02 - 22:10
    रेन डेकार्ट्स, पश्चिमी दर्शन के पिता, अपनी बात
    "मैं सोचता हूँ इसलिए मैं हूँ" के लिए
  • 22:10 - 22:11
    प्रसिद्ध है।
  • 22:11 - 22:18
    कोई और कथन इतने स्पष्ट रूप से सभ्यता के
    पतन और गुफा की दीवारों पर
  • 22:18 - 22:23
    परछाइयों के साथ एकीकरण को नहीं समझा सकता।
  • 22:23 - 22:32
    हर मानव की गलती की ही तरह, डेकार्ट्स ने भी
    मौलिक अस्तित्व की बराबरी,
  • 22:32 - 22:37
    सोच से करने की गलती की।
  • 22:37 - 22:51
    अपने सबसे प्रसिद्ध ग्रंथ की शुरुआत में,
    डेकार्ट्स ने लिखा था कि लगभग हर चीज़ को
  • 22:51 - 23:03
    संदेह के घेरे में लिया जा सकता है; वे अपनी इन्द्रियों और
    अपनी सोच तक पर संदेह कर सकते हैं।
  • 23:03 - 23:10
    इसी तरह कलाम सूत्र में बुद्ध ने कहा कि
    सत्य का पता लगाने के लिए,
  • 23:10 - 23:17
    सभी परंपराओं, शास्त्रों, शिक्षा, दिमाग
    और चेतना की हर बात पर
  • 23:17 - 23:20
    संदेह करना चाहिए।
  • 23:20 - 23:28
    इन दोनों ही लोगों ने बड़े अविश्वास से शुरुआत की,
    लेकिन अंतर यह था कि डेकार्ट्स ने
  • 23:28 - 23:35
    सोच के स्तर पर ही जानना बंद कर दिया था,
    वहीं बुद्ध गहराई में गए- उन्होंने मन के
  • 23:35 - 23:40
    गूढ़ स्तरों को समझने का प्रयास किया।
  • 23:40 - 23:47
    शायद अगर डेकार्ट्स अपनी सोच से परे जाते,
    तो वे अपनी असली प्रकृति को महसूस करते
  • 23:47 - 23:53
    और पश्चिमी चेतना आज बिलकुल अलग होती।
  • 23:53 - 24:01
    इसके बजाय, डेकार्ट्स ने एक ऐसे दुष्ट
    राक्षस की संभावना जताई जो हमें
  • 24:01 - 24:04
    भ्रम के पर्दे में रख रहा हो।
  • 24:04 - 24:11
    डेकार्ट्स ने इस दुष्ट राक्षस की पहचान
    उसके कर्मों से नहीं की।
  • 24:11 - 24:19
    जैसा कि फिल्म मैट्रिक्स में दिखाया गया, हम सभी
    ऐसे विस्तृत प्रोग्राम से जुड़े हो सकते हैं जो हमें
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    भ्रमपूर्ण सपनों की दुनिया से जोड़ता है।
  • 24:22 - 24:27
    फिल्म में, मनुष्य मैट्रिक्स में अपना जीवन जीते हैं,
    जबकि एक और स्तर पर वे केवल
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    बैटरी थे, अपनी जीवन शक्ति उन यंत्रों को देने वाले
    जो उनकी ऊर्जा का इस्तेमाल
  • 24:33 - 25:07
    अपने उद्देश्य के लिए करते हैं।
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    लोग हमेशा अपने से अलग बाहरी चीज़ को
    दोष देना चाहते हैं, दुनिया की हालत
  • 25:11 - 25:13
    या अपने स्वयं के दुःख के लिए।
  • 25:13 - 25:20
    चाहे वह कोई व्यक्ति हो, विशेष समूह या देश हो,
    धर्म या किसी प्रकार का नियंत्रक
  • 25:20 - 25:28
    डेकार्ट्स के बुरे राक्षस या मैट्रिक्स के संवेदनशील यंत्रों की तरह।
  • 25:28 - 25:35
    विडंबना यह है कि जिन राक्षसों की कल्पना डेकार्ट्स ने की
    उन्ही से उसने स्वयं को
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    परिभाषित भी किया।
  • 25:36 - 25:43
    जब आप समाधि पा लेते हैं, तो यह स्पष्ट हो जाता है
    कहीं पर कोई नियंत्रक है, कोई यंत्र,
  • 25:43 - 25:48
    और कोई दुष्ट राक्षस, जो हर रोज़
    आपके जीवन को निचोड़ रहे हैं।
  • 25:48 - 26:01
    आप मशीन हैं
  • 26:01 - 26:08
    आपकी स्वयं की संरचना कई छोटे सब-प्रोग्राम
    या छोटे मालिकों से बनी है।
  • 26:08 - 26:21
    एक ऐसा छोटा मालिक जो खाना चाहता है,
    दूसरा पैसा चाहता है, तो किसी को हैसियत, पद, ताकत
  • 26:21 - 26:26
    सेक्स,आत्मीयता चाहिए।
  • 26:26 - 26:29
    किसी को दूसरों की समझ या उनका ध्यान चाहिए।
  • 26:29 - 26:35
    इच्छाएं सचमुच अंतहीन होती हैं और
    कभी भी तृप्त नहीं हो सकतीं।
  • 26:35 - 26:41
    हम अपनी जेलों को सजाने में, अपने मुखौटे को
    सुधारने के दबाव में, और छोटे मालिकों के
  • 26:41 - 26:47
    पोषण में काफी समय खर्च करते हैं
    जिससे वे काफी शक्तिशाली हो जाते हैं।
  • 26:47 - 26:57
    किसी नशेड़ी की तरह ही, जितना ज़्यादा हम छोटे मालिकों की खुशामदी की
    कोशिश करते हैं, उतनी ज़्यादा हमारी लालसा बढ़ जाती है।
  • 26:57 - 27:05
    आजादी का मार्ग आत्म सुधार, या किसी भी तरह
    अपने स्वार्थ की पूर्ति करना नहीं है,
  • 27:05 - 27:13
    बल्कि यह अपने स्वार्थ को पूरी तरह त्याग देना है।
  • 27:13 - 27:18
    कुछ लोग डरते हैं कि उनकी असली प्रकृति के जागने से
    वे अपना व्यक्तित्व
  • 27:18 - 27:20
    और जीवन का आनंद खो देंगे।
  • 27:20 - 27:29
    जबकि सच्चाई इसके विपरीत है; आत्मा का अद्वितीय
    वैयक्तिकरण केवल तभी व्यक्त किया जा सकता है
  • 27:29 - 27:36
    जब अनुकूलित आत्म पर काबू पाया जा सके।
  • 27:36 - 27:42
    क्योंकि हम मैट्रिक्स में सोते रहते हैं, इसलिए हम में से
    अधिकांश लोग यह कभी नहीं जान पाते कि वास्तव में
  • 27:42 - 27:58
    आत्मा क्या कहना चाहती है
  • 27:58 - 28:05
    समाधि के मार्ग में ध्यान शामिल है, जो
    दोनों को देख रहा है, अनुकूलित आत्म; जो
  • 28:05 - 28:14
    बदल जाता है, और आपके असली स्वरूप की समझ;
    वह जो बदलता नहीं।
  • 28:14 - 28:22
    जब आप अपने अस्तित्व के स्रोत, अचल बिंदु पर आते हैं,
    तब आप आगे के निर्देशों का इंतजार यह जानने पर
  • 28:22 - 28:28
    ज़ोर दिए बिना करते हैं कि आपकी बाहरी दुनिया
    कैसे बदलेगी।
  • 28:28 - 28:38
    मेरी इच्छा नहीं, बल्कि इससे उच्चतर संपन्न होगा।
  • 28:38 - 28:44
    यदि दिमाग केवल बाहरी दुनिया को बदलने की
    कोशिश करता है, तो आपको लगता है कि
  • 28:44 - 28:49
    पथ क्या होना चाहिए, यह परछाई को बदल कर
    शीशे में अपनी छवि बदलने
  • 28:49 - 28:52
    जैसा है।
  • 28:52 - 28:58
    दर्पण में दिख रही छवि की मुस्कान के लिए
    आप से प्रतिबिंब को नहीं बदल सकते,
  • 28:58 - 29:06
    आपको उस स्वयं को पाना होगा
    जो छवि का सही स्रोत है।
  • 29:06 - 29:11
    जब आप अपने असली आत्म का एहसास कर लेते हैं,
    तो इसका मतलब यह नहीं होता कि जो बाहर है
  • 29:11 - 29:14
    उसे बदलना ही है।
  • 29:14 - 29:21
    जो बदलता है वह चेतन, बुद्धिमान, आंतरिक ऊर्जा
    या प्राण होता है जोकि अनुकूलित स्वरूपों से
  • 29:21 - 29:30
    आज़ाद होता है और आत्मा से निर्देशित होने के लिए
    उपलब्ध हो जाता है।
  • 29:30 - 29:35
    आप आत्मा के उद्देश्य को तभी जान सकते हैं
    जब आप अनुकूलित आत्म और उसके
  • 29:35 - 29:58
    अनंत लक्ष्यों को देख सकें, और उन्हें जाने दें।
  • 29:58 - 30:04
    ग्रीक पौराणिक कथाओं में, यह कहा गया कि
    देवताओं ने सिसिफस की निंदा एक अर्थहीन कार्य को
  • 30:04 - 30:07
    अनंत काल तक दोहराने के लिए की थी।
  • 30:07 - 30:12
    उसका काम पहाड़ पर उस बड़े पत्थर को
    चढाने का था, जो वापस लुढ़क आता था।
  • 30:12 - 30:25
    फ्रांसीसी
  • 30:25 - 30:32
    अस्तित्ववादी और नोबेल पुरस्कार विजेता लेखक,
    अल्बर्ट कैमस ने सिसिफस की हालत को
  • 30:32 - 30:35
    मानवता के रूपक की तरह देखा ।
  • 30:35 - 30:47
    उसने प्रश्न पूछा, 'हम इस बेतुके अस्तित्व में
    अर्थ कैसे प्राप्त कर सकते हैं?'।
  • 30:47 - 30:55
    इंसानों के रूप में हम अंतहीन मेहनत करते हैं, जो कभी नहीं आता
    उस कल के लिए निर्माण करते हैं, और फिर
  • 30:55 - 31:09
    हम मर जाते हैं।
  • 31:09 - 31:16
    अगर हम वास्तव में इस सच्चाई को महसूस कर लेते हैं
    तो हम अपने अहंकारी व्यक्तित्व से जुड़ कर
  • 31:16 - 31:33
    या तो पागल हो जाएंगे या फिर जागृत होकर आज़ाद हो जाएंगे।
  • 31:33 - 31:38
    हम बाहरी संघर्ष में कभी सफल नहीं हो सकते,
    क्योंकि यह हमारे भीतर की दुनिया का
  • 31:38 - 31:40
    प्रतिबिंब है।
  • 31:40 - 31:46
    ब्रह्माण्डीय मजाक, स्थिति का बेतुकापन
    स्पष्ट हो जाता है जब अहंकारी आत्म
  • 31:46 - 32:15
    अपने बेकार कार्यों से जागृत होने में विफल हो जाता है।
  • 32:15 - 32:24
    जेन में एक कहावत है, "ज्ञानोदय से पहले
    लकड़ी काटो और पानी ले लो।
  • 32:24 - 32:35
    ज्ञान पाने के बाद, लकड़ी काटो, पानी ले लो"।
  • 32:35 - 32:41
    ज्ञानोदय से पहले गेंद को पहाड़ी पर
    चढ़ाना होगा, ज्ञान प्राप्ति के बाद भी
  • 32:41 - 32:45
    गेंद को पहाड़ पर चढ़ाना होगा।
  • 32:45 - 32:47
    बदला क्या है?
  • 32:47 - 32:52
    जो है उसके लिए आंतरिक प्रतिरोध।
  • 32:52 - 32:59
    संघर्ष रोक दिया गया है, या फिर
    यूं कहें की जो संघर्ष करता है उसे ही
  • 32:59 - 33:01
    भ्रामक पाया गया।
  • 33:01 - 33:15
    व्यक्तिगत इच्छा या व्यक्तिगत मनऔर
    दैवीय इच्छा, या उच्चतर मन एक सीध में होते हैं।
  • 33:15 - 33:28
    अंततः समाधि सभी आंतरिक प्रतिरोधों को त्यागना है -
    सभी बदलती हुई घटनाओ को बिना किसी
  • 33:28 - 33:29
    अपवाद के।
  • 33:29 - 33:36
    जो परिस्थिति के बावजूद आंतरिक शांति का
    एहसास कर लेता है, वही प्राप्त करता है
  • 33:36 - 33:39
    सच्ची समाधि।
  • 33:39 - 33:45
    आप प्रतिरोध इसलिए नहीं करते क्योंकि किसी न किसी चीज़ की
    अनदेखी करते हैं, बल्कि इसलिए कि आपकी
  • 33:45 - 33:50
    आतंरिक आज़ादी बाहर प्रासंगिक न हो।
  • 33:50 - 33:58
    यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि जब हम वास्तविकता को
    स्वीकार करते हैं, तो इसका मतलब यह नहीं कि
  • 33:58 - 34:04
    हम दुनिया में कार्रवाई करना बंद कर दें,
    या हम ध्यानमग्न शांतिवादी बन जाते हैं।
  • 34:04 - 34:10
    दरअसल सच्चाई इसके विपरीत हो सकती है; जब हम
    असुविधाजनक उद्देश्यों से प्रेरित हुए बिना कार्य करने के लिए
  • 34:10 - 34:17
    स्वतंत्र होते हैं, तब हमारी आतंरिक ऊर्जा की
    पूर्ण शक्ति के साथ, ताओ के अनुरूप
  • 34:17 - 34:30
    कार्य किया जा सकता है।
  • 34:30 - 34:36
    कई लोग तर्क देंगे कि दुनिया को बदलने और
    शांति कायम करने के लिए ज़रूरी है
  • 34:36 - 34:40
    हमारे कथित दुश्मनों के खिलाफ ज़ोरदार लड़ाई की।
  • 34:40 - 34:49
    शांति के लिए लड़ना सन्नाटे के लिए चिल्लाने के समान है;
    यह वही ज़्यादा करता है जो आप नहीं चाहते।
  • 34:49 - 34:55
    आजकल हर चीज़ के विरुद्ध युद्ध छिड़ा हुआ है:
    आतंक के खिलाफ युद्ध, बीमारी के खिलाफ युद्ध,
  • 34:55 - 35:01
    भूख के खिलाफ युद्ध।
  • 35:01 - 35:13
    दरअसल हर युद्ध हमारे ही विरुद्ध है।
  • 35:13 - 35:17
    यह लड़ाई एक सामूहिक भ्रम का हिस्सा है।
  • 35:17 - 35:23
    हम कहते हैं कि हम शांति चाहते हैं, लेकिन हम
    युद्ध करवाने वाले नेताओं को ही चुनते रहते हैं।
  • 35:23 - 35:29
    हम खुद से झूठ बोलते हैं यह कह कर कि हम
    मानवाधिकारों के पक्षधर हैं, लेकिन कारख़ानों में बनी
  • 35:29 - 35:32
    चीज़ों को खरीदते रहते हैं।
  • 35:32 - 35:36
    हम कहते हैं कि हमें स्वच्छ हवा चाहिए,
    लेकिन हम प्रदूषण करते रहते हैं।
  • 35:36 - 35:43
    हम चाहते हैं कि विज्ञान कैंसर से हमारा इलाज करे, लेकिन
    खुद को बीमार करने वाली उन आदतों को नहीं बदलते
  • 35:43 - 35:46
    जिनसे हम बीमार पड़ सकते हैं।
  • 35:46 - 35:51
    हम खुद को धोखा देते हैं कि हम
    एक बेहतर जीवन को बढ़ावा दे रहे हैं।
  • 35:51 - 35:58
    हम अपने उन छिपे हुए हिस्सों को नहीं देखना चाहते
    जो पीड़ा और मृत्यु की अनदेखी कर रहे हैं।
  • 35:58 - 36:07
    यह विश्वास जो हमारी सोच और विचार से आया है
    कि हम कैंसर, भूख, आतंक, या
  • 36:07 - 36:13
    किसी भी दुश्मन के खिलाफ युद्ध जीत सकते हैं,
    दरअसल हमें इस धोखे में रखता है कि
  • 36:13 - 36:19
    हमें इस ग्रह पर जीने के तरीके को बदलने की
    कोई आवश्यकता नहीं है।
  • 36:19 - 36:24
    आंतरिक दुनिया वह जगह है जहां
    क्रांति सबसे पहले होनी चाहिए।
  • 36:24 - 36:31
    जब हम अपने अंदर जीवन के सर्पिल चक्र को
    महसूस कर सकेंगे, तभी बाहरी दुनिया
  • 36:31 - 36:34
    ताओ के अनुसार हो पाएगी।
  • 36:34 - 36:42
    तब तक, हम जो कुछ भी करते हैं वह मन द्वारा
    फैलाई गई अराजकता को ही बढ़ाएगा।
  • 36:42 - 36:49
    युद्ध और शांति एक अंतहीन नृत्य में साथ-साथ पैदा होते है;
    ये दोनों एक साथ चलते रहते हैं।
  • 36:49 - 36:53
    एक दूसरे के बिना नहीं जी सकते।
  • 36:53 - 36:59
    जैसे अंधेरे के बिना प्रकाश, और
    धरातल के बिना ऊंचाई नहीं रह सकती।
  • 36:59 - 37:07
    ऐसा लगता है जैसे दुनिया को चाहिए बिना अंधेरे के रोशनी,
    बिना खालीपन के पूर्णता, बिना उदासी के
  • 37:07 - 37:20
    खुशी।
  • 37:20 - 37:38
    मन जितना अधिक संलग्न होता है, उतनी ही ज़्यादा
    यह दुनिया बिखर जाती है।
  • 37:38 - 37:44
    अहंकारी दिमाग से आने वाला हर समाधान
    इस विचार से प्रेरित होता है कि कहीं कोई समस्या है,
  • 37:44 - 37:53
    और समाधान, हल करने की कोशिश से भी
    अधिक बड़ी समस्या बन जाता है।
  • 37:53 - 38:08
    जिसका आप विरोध करते हैं वह बरक़रार रहता है।
  • 38:08 - 38:15
    मानवीय सरलता नए एंटीबायोटिक्स बनाती है किन्तु
    प्रकृति दो कदम आगे ही रहती है और बैक्टीरिया को
  • 38:15 - 38:17
    और मज़बूत बना देती है।
  • 38:17 - 38:24
    इस लड़ाई में हमारे द्वारा किये गए सारे प्रयासों के बावजूद,
    कैंसर का प्रसार वास्तव में बढ़ रहा है,
  • 38:24 - 38:33
    दुनिया में भूखे लोगों की संख्या लगातार बढ़ रही है,
    दुनिया भर में आतंकवादी हमलों की संख्या
  • 38:33 - 38:36
    बढ़ती जा रही है।
  • 38:36 - 38:45
    हमारे दृष्टिकोण में क्या गलत है?
  • 38:45 - 38:51
    गोएथे की कविता में ओझा के चेले की तरह ही,
    हमने एक महान शक्ति पा तो ली है,
  • 38:51 - 38:56
    लेकिन उसे इस्तेमाल करने की समझ नहीं है।
  • 38:56 - 39:03
    समस्या यह है कि हम जिस उपकरण का उपयोग करते हैं
    उसकी हमें समझ ही नहीं हैं।
  • 39:03 - 39:18
    हम मानवीय मन और उसकी उचित भूमिका
    और उद्देश्य को समझते ही नहीं हैं।
  • 39:18 - 39:24
    जिस सीमित नियंत्रित तरीके से हम सोचते हैं, महसूस करते हैं
    जीवन का अनुभव प्राप्त करते हैं उसी से
  • 39:24 - 39:35
    संकट पैदा होता है।
  • 39:35 - 39:42
    हमारे तर्कवाद ने हमें कई प्राचीन संस्कृतियों के ज्ञान को
    पहचानने और अनुभव करने की हमारी क्षमता को
  • 39:42 - 39:48
    समाप्त कर दिया है।
  • 39:48 - 39:55
    हमारी अहंकारी सोच ने हमें जीवन की गहराई और
    प्रकांड पवित्रता, जीवन के असली मालिक,
  • 39:55 - 40:03
    और एक अलग स्तर की समझ को महसूस करने की
    क्षमता से वंचित कर दिया है जो अब
  • 40:03 - 40:11
    लगभग मानवता के सामने हार चुका है।
  • 40:11 - 40:18
    मिस्र की प्राचीन परंपरा में, नेटर्स ठेठ किस्म के
    वे चरित्र होते थे जिन की विशेषताएं उन लोगों में
  • 40:18 - 40:23
    आ जाती थी जो अपने शारीरिक और आध्यात्मिक शरीर को
    इस तरह स्वच्छ करते थे जिससे वह ऊंचे दर्जे की
  • 40:23 - 40:28
    चेतना को अपने अंदर रखने के काबिल हो जाते थे।
  • 40:28 - 40:39
    मूल नेटर या ज्ञान के इस दिव्य सिद्धांत को
    थॉथ या तेहुति के नाम से जाना जाता था।
  • 40:39 - 40:45
    अक्सर ऐसे लेखक के रुप में दर्शाया जाता था जिसका सिर
    चिड़िया या इबिस जैसा है, और जो सारे ज्ञान और
  • 40:45 - 40:49
    विद्या के मूल का प्रतिनिधि है।
  • 40:49 - 40:56
    थॉथ को सोच या विचार के ब्रह्माण्डीय
    सिद्धांत के रूप में भी बताया जा सकता है।
  • 40:56 - 41:04
    थॉथ ने हमें भाषा, विचार, लेखन, गणित,
    और मन की सभी कलाएँ
  • 41:04 - 41:06
    और अभिव्यक्तियां दी हैं।
  • 41:06 - 41:15
    केवल उन लोगों को ही थॉथ के पवित्र ज्ञान को जानने की
    अनुमति मिली जिन्हे विशेष प्रशिक्षण मिला था।
  • 41:15 - 41:26
    थॉथ की पुस्तक कोई भौतिक पुस्तक नहीं,
    बल्कि आकाशीय दुनिया का
  • 41:26 - 41:27
    ज्ञान है।
  • 41:27 - 41:33
    ऐसा कहा जाता है कि थॉथ का ज्ञान प्रत्येक मनुष्य के भीतर
    बड़ी गहराई में एक गुप्त स्थान में छिपा था,
  • 41:33 - 41:42
    और एक सुनहरी नागिन द्वारा संरक्षित किया गया था।
  • 41:42 - 41:49
    खजाने की रक्षा करने वाले सांप या
    ड्रैगन का मिथक ऐसा है जो
  • 41:49 - 42:02
    कई संस्कृतियों में विद्यमान है और कुंडलिनी शक्ति,
    ची, पवित्र आत्मा और आंतरिक ऊर्जा
  • 42:02 - 42:06
    जैसे नामों से बुलाया गया है।
  • 42:06 - 42:13
    सुनहरी नागिन उस अहंकारी निर्माण जैसी है
    जो आंतरिक ऊर्जाओं से बंधी हुई है और जब तक
  • 42:13 - 42:19
    इसमें महारत और इस पर काबू नहीं पाया जा सकेगा,
    आत्मा कभी भी सच्चा ज्ञान नहीं पा पाएगी।
  • 42:19 - 42:25
    ऐसा कहा जाता था कि थॉथ की पुस्तक पढ़ने वाले को
    केवल पीड़ा ही मिली,
  • 42:25 - 42:32
    इसके बावजूद की देवताओं के रहस्य
    और सितारों में छुपी ही हर बात
  • 42:32 - 42:35
    वे जान जाते थे।
  • 42:35 - 42:42
    यह समझना चाहिए कि जिस भी व्यक्ति ने पुस्तक पढ़ी,
    जिस भी अहंकार ने इसे नियंत्रित करने की कोशिश की
  • 42:42 - 42:45
    उसे पीड़ा ही मिली है।
  • 42:45 - 42:54
    मिस्र की परंपरा में जागृत चेतना की पहचान
    ओसिरिस से की गयी है।
  • 42:54 - 43:00
    इस जागृत चेतना के बिना, सीमित आत्म द्वारा
    प्राप्त कोई ज्ञान या समझ
  • 43:00 - 43:08
    खतरनाक, और उच्च ज्ञान से अलग होगा।
  • 43:08 - 43:16
    होरस की आंख खुली ही रहनी थी।
  • 43:16 - 43:21
    यहां पर पाया जाने वाला गूढ़ अर्थ
    ईडन के बगीचे की जानी पहचानी
  • 43:21 - 43:24
    कहानी "द फॉल" के समान है।
  • 43:24 - 43:30
    थॉथ की किताब अच्छाई-बुराई के ज्ञान की उस किताब की तरह है
    जिसका फल खाने का लालच
  • 43:30 - 43:42
    आदम और ईव को हुआ था।
  • 43:42 - 43:49
    मानवता पहले ही वर्जित फल खा चुकी है,
    थॉथ की पुस्तक को पहले ही खोल चुकी है, और
  • 43:49 - 43:55
    बगीचे से बाहर निकाल दी गई है।
  • 43:55 - 44:02
    सांप उस मौलिक सर्पिल की तरह है जो
    छोटी दुनिया से लेकर सारी दुनिया तक
  • 44:02 - 44:07
    फैला हुआ है।
  • 44:07 - 44:12
    आज सांप आपकी तरह जी रहा है।
  • 44:12 - 44:19
    यह अहंकारी मन है जिसे इस दुनिया के रूप में
    बताया गया है।
  • 44:19 - 44:23
    हम पहले कभी इतने ज्ञान तक नहीं पहुंच पाए थे।
  • 44:23 - 44:30
    हम इस भौतिक संसार की गहराई में जा चुके हैं, यहां तक ​​कि
    तथाकथित ईश्वरीय कण भी ढूंढ रहे हैं, लेकिन
  • 44:30 - 44:37
    हम कभी भी इतने सीमित, अपने वजूद, अपने
    रहन-सहन से अनजान नहीं थे, और हम यह भी
  • 44:37 - 45:28
    नहीं समझ पाते कि हम कैसे पीड़ा पैदा कर रहे हैं।
  • 45:28 - 45:32
    हमारी सोच ने ही आज की इस दुनिया को बनाया है।
  • 45:32 - 45:38
    जब भी हम किसी चीज़ को अच्छा या बुरा कहते हैं,
    या अपने मन में कोई पसंद बना लेते हैं तो यह
  • 45:38 - 45:44
    अहंकार निर्माण या स्वार्थ के पैदा होने से होता है।
  • 45:44 - 45:51
    समाधान शांति के लिए लड़ना या प्रकृति पर विजय पाना नहीं,
    बल्कि इस सत्य को पहचानना है;
  • 45:51 - 46:00
    कि अहंकार निर्माण का होना द्वन्द्व, अपना और पराया,
    तेरा-मेरा, मानव और प्रकृति,
  • 46:00 - 46:11
    अंदरूनी और बाहरी में विभाजन पैदा करता है।
  • 46:11 - 46:20
    अहंकार हिंसा है; इसे अपने अस्तित्व के लिए दूसरे से
    एक अवरोध, एक परिधि की आवश्यकता होती है।
  • 46:20 - 46:24
    अहंकार के बिना किसी के विरुद्ध कोई युद्ध है ही नहीं।
  • 46:24 - 46:31
    लाभ के लिए कोई अहंकार, कोई अतिव्यापी प्रकृति नहीं है।
  • 46:31 - 46:39
    हमारी दुनिया में ये बाहरी संकट गंभीर आंतरिक संकट को
    दर्शाते हैं; हम नहीं जानते कि हम
  • 46:39 - 46:41
    कौन हैं।
  • 46:41 - 46:48
    हमें हमारी अहंकारी पहचान से जाना जाता है,
    डर से हम भरे रहते हैं और
  • 46:48 - 46:51
    अपनी असली प्रकृति से दूर हो जाते हैं।
  • 46:51 - 47:01
    जातियां, धर्म, देश, राजनीतिक संबद्धता,
    हम जिस भी समूह से संबंधित होते हैं, सब
  • 47:01 - 47:05
    हमारी अहंकारी पहचान को मज़बूत करते हैं।
  • 47:05 - 47:10
    आज ग्रह पर मौजूद लगभग हर समूह
    अपने परिप्रेक्ष्य को वैसे ही सत्य बताता है,
  • 47:10 - 47:15
    जैसे हम व्यक्तिगत स्तर पर करते हैं।
  • 47:15 - 47:21
    सच्चाई को अपना बताकर, समूह अपने
    अस्तित्व को उसी तरह बढ़ावा देता है जैसे
  • 47:21 - 47:30
    अहंकार या आत्म संरचना अपने आप को
    दूसरे के विरुद्ध परिभाषित करता है।
  • 47:30 - 47:36
    अब पहले से भी ज़्यादा भिन्न वास्तविकताएं और
    ध्रुवीकृत विश्वास तंत्र पृथ्वी पर एक साथ
  • 47:36 - 47:37
    रह रहे हैं।
  • 47:37 - 47:43
    ऐसा हो सकता है कि एक ही बाहरी घटना के प्रति
    अलग अलग व्यक्ति बिलकुल ही अलग
  • 47:43 - 47:49
    विचारों और भावनात्मक प्रतिक्रियाओं का अनुभव करें।
  • 47:49 - 47:57
    इसी तरह, संसार और निर्वाण,
    स्वर्ग और नरक, एक ही दुनिया के
  • 47:57 - 48:00
    दो अलग-अलग आयाम हैं।
  • 48:00 - 48:12
    एक घटना जो किसी व्यक्ति को सर्वनाशक लगे,
    दुसरे के लिए आशीर्वाद भी बन सकती है।
  • 48:12 - 48:17
    तो यह स्पष्ट हो रहा है कि आपकी बाहरी परिस्थितियों को
    आपकी आतंरिक दुनिया को किसी भी रूप में
  • 48:17 - 48:22
    प्रभावित करने की आवश्यकता नहीं है।
  • 48:22 - 48:31
    समाधि का एहसास करने का मतलब स्वतः गतिमान पहिया बनना,
    स्वायत्त होना, स्वयं ब्रह्मांड होने
  • 48:31 - 48:36
    जैसा है।
  • 48:36 - 48:45
    आपके जीवन का अनुभव बदलती घटनाओं के लिए
    प्रासंगिक नहीं है।
  • 48:45 - 48:51
    मेटाट्रॉन के क्यूब से समानता दर्शाई जा सकती है।
  • 48:51 - 48:57
    विभिन्न प्राचीन ईसाई, इस्लामी और यहूदी ग्रंथों में
    मेटाट्रॉन का उल्लेख किया गया है, और यह मूल रूप से
  • 48:57 - 49:05
    मिस्र के थौथ के साथ साथ ग्रीस के
    हर्मीस ट्राइस्मेजिस्टस से संबंधित है।
  • 49:05 - 49:10
    मेटाट्रॉन टेट्रैग्रामेटन से बहुत ही करीब से जुड़ा हुआ है।
  • 49:10 - 49:17
    टेट्रैग्रामेटन एक मौलिक ज्यामितीय पैटर्न है,
    भौतिक सच्चाई का नमूना या मूल उत्पत्ति,
  • 49:17 - 49:26
    जिसे ईश्वर की दुनिया या लोगोस भी कहा जाता है।
  • 49:26 - 49:32
    यहां हम आकार का द्वी-आयामी रूप देख रहे हैं,
    लेकिन यदि आप एक दूसरे तरीके से देखें,
  • 49:32 - 49:36
    तो आपको एक थ्री-डी क्यूब दिखाई देता है।
  • 49:36 - 49:42
    जब आप क्यूब देखते हैं, तो आकार में कुछ बदलाव नहीं होता,
    लेकिन आपका दिमाग आपके
  • 49:42 - 49:46
    देखने के तरीके में एक नया आयाम जोड़ चुका है।
  • 49:46 - 49:52
    आयामी स्वरूप या किसी का दृष्टिकोण
    दुनिया को देखने के एक नए तरीके का
  • 49:52 - 49:56
    आदी हो जाने की बात है।
  • 49:56 - 50:04
    समाधि प्राप्त करने पर हम परिप्रेक्ष्य से या
    नए दृष्टिकोण बनाने के लिए स्वतन्त्र हो जाते हैं, क्योंकि
  • 50:04 - 50:13
    कोई आत्म केंद्रित या किसी विशेष दृष्टिकोण से
    जुड़ाव नहीं होता।
  • 50:13 - 50:23
    मानव इतिहास में सबसे महान बुद्धिजीवियों ने
    अक्सर सीमित आकारों से दूर के विचारों की ओर
  • 50:23 - 50:25
    इशारा किया है।
  • 50:25 - 50:32
    आइंस्टीन ने कहा है, "मनुष्य की सही औकात
    मुख्य रूप से इस बात से निर्धारित होती है कि
  • 50:32 - 50:38
    उसने खुद से आज़ादी कैसे पाई है। "
  • 50:38 - 50:46
    तो ऐसा नहीं है कि अपने बारे में सोच और अस्तित्व बुरा है,
    सोच एक अद्भुत चीज़ है जब दिमाग
  • 50:46 - 50:54
    दिल की सेवा करता है।
  • 50:54 - 51:06
    वेदांत में यह कहा गया है कि मन एक अच्छा सेवक बन सकता है
    लेकिन वह एक खराब गुरु है।
  • 51:06 - 51:14
    अहंकार हमेशा भाषा और नाम के ज़रिये सतत रूप से शुद्ध होता रहता,
    और लगातार निर्णय लेता रहता है।
  • 51:14 - 51:18
    एक की जगह दूसरी चीज़ को तरजीह देना।
  • 51:18 - 51:24
    जब मन और इंद्रियां आपके स्वामी होते हैं, तो वे
    अंतहीन पीड़ा, अंतहीन लालसा और उलझन देंगे,
  • 51:24 - 51:32
    हमें सोच के मैट्रिक्स में बंद करते हुए।
  • 51:32 - 51:40
    यदि आप समाधि का एहसास करना चाहते हैं, तो
    अपने विचारों को अच्छे या बुरे के रूप में न देखें, बल्कि पता लगाएं
  • 51:40 - 51:46
    इंद्रियों से पहले, सोचने से पहले आप कौन हैं।
  • 51:46 - 51:57
    जब सारे नाम त्याग दिए जाते हैं तो चीजों को
    उनके असली स्वरूप में देखना संभव हो जाता है।
  • 51:57 - 52:05
    जिस क्षण एक बच्चे को यह बताया जाता है कि पक्षी क्या है,
    और अगर वे उन्हें बताई गई बात को मान जाते हैं तो वे
  • 52:05 - 52:08
    फिर कभी पक्षी नहीं देख पाते।
  • 52:08 - 52:52
    वे केवल अपने विचार देखते हैं।
  • 52:52 - 52:58
    ज्यादातर लोग सोचते हैं कि वे
    स्वतंत्र, सचेत और जागृत हैं।
  • 52:58 - 53:05
    अगर आपको लगता है कि आप पहले से ही जागे हुए हैं,
    तो आप उसे पाने के लिए मुश्किल काम क्यों करेंगे
  • 53:05 - 53:09
    जिसे आप पहले से ही अपने पास मौजूद मानते हैं ?
  • 53:09 - 53:16
    जागने से पहले, यह स्वीकार करना
    आवश्यक है कि आप सो रहे हैं,
  • 53:16 - 53:20
    मैट्रिक्स में जी रहे हैं।
  • 53:20 - 53:26
    अपने आप से झूठ बोले बिना, ईमानदारी से
    अपने जीवन को परखें।
  • 53:26 - 53:32
    क्या आप अपनी मर्ज़ी से अपने रोबोट जैसे,
    दोहराव वाली जीवन शैली को रोकने में सक्षम हैं?
  • 53:32 - 53:40
    क्या आप खुशी की तलाश करना और दर्द से भागना बंद कर सकते हैं,
    क्या आप कुछ खाद्य पदार्थों, गतिविधियों, दिल बहलाने वाली चीज़ों के
  • 53:40 - 53:42
    आदी हैं?
  • 53:42 - 53:49
    क्या आप लगातार निर्णय ले रहे हैं, दोष दे रहे हैं,
    खुद की और दूसरों की आलोचना कर रहे हैं?
  • 53:49 - 53:56
    क्या आपका दिमाग लगातार उत्तेजना की तलाश करता है,
    या क्या आप शांति में जीकर पूरी तरह से
  • 53:56 - 53:59
    संतुष्ट हैं?
  • 53:59 - 54:02
    क्या आप इस बारे में प्रतिक्रिया करते हैं कि
    लोग आपके बारे में क्या सोचते हैं?
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    क्या आप अनुमोदन, सकारात्मक प्रबलता चाहते हैं?
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    क्या आप अपने जीवन की परिस्थितियों को
    किसी तरह कमजोर करते हैं?
  • 54:12 - 54:18
    अधिकांश लोग अपने जीवन का अनुभव
    उसी तरह करेंगे जैसे वे कल और अब से
  • 54:18 - 54:23
    एक साल बाद, और अब से दस साल बाद करेंगे।
  • 54:23 - 54:29
    जब आप अपनी रोबोट जैसी प्रकृति का समझने लगते हैं
    तो आप अधिक जागृत हो जाते हैं।
  • 54:29 - 54:35
    आप समस्या की गहराई को पहचानना शुरू कर देते हैं।
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    आप पूरी तरह नींद में डूबे हुए हैं, सपने में खोए हुए हैं।
  • 54:42 - 54:48
    प्लेटो की गुफा के निवासियों की तरह, इस सत्य को
    सुनने वाले अधिकतर लोग अपने जीवन को
  • 54:48 - 54:56
    बदलने के लिए न तो तैयार होंगे न काबिल होंगे
    क्योंकि वे अपने पारिवारिक तरीकों से जुड़े हुए हैं।
  • 54:56 - 55:02
    हम अपने तरीकों को न्यायसंगत बताने के लिए काफी आगे
    चले जाते हैं, सत्य का सामना करने की जगह
  • 55:02 - 55:06
    अपने सिर को मिटटी में दबा लेते हैं
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    हम अपने रक्षक चाहते हैं, लेकिन हम खुद
    सूली पर चढ़ने के लिए तैयार नहीं हैं।
  • 55:12 - 55:20
    स्वतंत्र होने के लिए आप क्या कीमत चुका सकते हैं?
  • 55:20 - 55:26
    यह समझें कि यदि आप अपनी आंतरिक दुनिया बदलते हैं, तो
    आपको अपने बाहरी जीवन को बदलने के लिए भी तैयार रहना चाहिए।
  • 55:26 - 55:32
    आपकी पुरानी संरचना और आपकी पुरानी पहचान को
    वो मृत मिट्टी बनना चाहिए जिसमें से
  • 55:32 - 55:40
    नई उत्पत्ति होती है।
  • 55:40 - 55:45
    जागृति की तरफ जाने का पहला कदम यह
    महसूस करना है कि हमें मानवता के मैट्रिक्स से,
  • 55:45 - 55:50
    मुखौटे से पहचाना जाता है।
  • 55:50 - 55:55
    हमारे भीतर किसी को यह सत्य सुनकर
    नींद से जग जाना चाहिए।
  • 55:55 - 56:18
    आपका एक हिस्सा है, कालनिर्पेक्ष,
    जो हमेशा से सत्य को जानता है।
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    दिमाग का मैट्रिक्स हमारा ध्यान भटकाता है, मनोरंजन करता है,
    हमें अंतहीन रूप से लालसा और भटकाव के
  • 56:32 - 56:39
    लगातार बदलते रूपों के चक्र में कार्य, उपभोग,
    लालच करवाता रहता है, हमारी चेतना के खिलने,
  • 56:39 - 56:48
    हमारी उत्पत्ति के जन्म-अधिकार से हमें दूर रखता है,
    जिसे समाधि कहते हैं।
  • 56:48 - 56:58
    तर्कहीन सोच सामान्य जीवन के लिए है।
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    आपका दिव्य तत्व गुलाम बन चुका है,
    सीमित आत्म संरचना से पहचाना जाता है।
  • 57:06 - 57:16
    महान ज्ञान, आप कौन हैं यह सच्चाई
    आपके अस्तित्व की गहराई में दफ़न है।
  • 57:16 - 57:27
    जे कृष्णमूर्ति ने कहा है, "अत्यंत बीमार समाज के अनुसार
    ढलना किसी के स्वास्थ्य का
  • 57:27 - 57:40
    कोई मापदंड नहीं है। "
  • 57:40 - 58:03
    अहंकारी दिमाग के रूप में चिह्नित होना
    बीमारी है और समाधि इसका इलाज।
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    इतिहास में साधु-संतों और जागृत प्राणियों
    सभी ने आत्मसमर्पण के ज्ञान को सीखा है।
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    सच्चे आत्म को महसूस करना कैसे संभव है?
  • 58:45 - 58:53
    जब आप माया के पर्दे से झांकते हैं, और
    भ्रमपूर्ण आत्म को छोड़ देते हैं, तो बचता क्या है?
Title:
Samadhi Part 1 - "Maya, the Illusion of the Self"
Description:

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Video Language:
English
Team:
Awaken the World
Project:
01 -Samadhi Film Series
Duration:
59:14

Hindi subtitles

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