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गलत सूचना नस्लवाद और विदेशीजन भीति को कैसे जन्म देती है?

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    नमस्ते, मैं हरि श्रीनिवासन टेक ऑन फेक के
    दूसरे संस्करण में आपका स्वागत करता हूं।
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    इस कड़ी में एक नजर डालते हैं बढ़ती हुई
    विदेशीजन भीति (ज़ीनोफ़ोबिया)
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    और एशियाई मूल के लोगों के प्रति
    बढ़ती नस्‍लीय घृणा पर।
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    इन सब का कारण है कोरोनावायरस
    के विषय में गलत जानकारी।
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    चलिए जनवरी 2020 के अंत की ओर
    मुड़कर देखें,
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    जब संपूर्ण विश्‍व कोविड-19 क्‍या है
    यह जानने का प्रयास कर रहा था।
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    यूट्यूब पर एक वीडियो
    फिर से उभर आया।
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    उसका शीर्षक था:
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    "क्या आप चमगादड़ का मांस और
    शोरबा खाने से बीमार पड़ जाते हैं ?"
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    यह कई जगहों पर दिखाई दिया जैसे कि यहां
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    और यहाँ
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    और यहाँ भी।
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    टिप्पणी करने वालों ने न सिर्फ़ वीडियो में
    दिख रही महिला पर धावा बोला
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    बल्कि उन्होंने चीनी लोगों की हर बात
    पर हमला किया:
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    उनके खान-पान की आदतें, उनकी संस्कृति।
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    यह वीडियो चीन में फिल्माया भी नहीं गया था।
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    न ही इसे कोरोनावायरस के समय फिल्माया
    गया था।
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    इसे तीन वर्ष पूर्व पलाऊ के पैसिफिक आइलैंड
    में फिल्माया गया था।
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    यह कौन जानता है?
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    वह यात्रा व्लॉगर जिसने इसे बनाया,
    वैंग मेंग योन,
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    यह उदाहरण गलत जानकारी के एक अधिक बड़े
    स्‍वरूप का हिस्सा है
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    जहां लोग बातों को मुद्दे से भटका देते हैं।
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    कोई भला ऐसा क्यों करेगा?
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    क्योंकि इससे ढेर सारी ऑनलाइन
    प्रतिक्रियाएं मिलती हैं।
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    पाठक को अधिक भावुक और कटु अनुभव
    करवाना
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    यानी अधिक टिप्पणियाँ।
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    यानी अधिक क्लिक।
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    जिसका मतलब कभी-कभी अधिक विज्ञापन
    पाना भी होता है।
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    दुर्भाग्य से यात्रा व्लॉगर वैंग मेंग युन
    के लिए,
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    यह वीडियो उनके और एशियाई लोगों के
    विरुद्ध हमलों के लिए ईंधन बन गया।
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    मुझे बहुत खेद है, लेकिन मुझे लगता है कि
    यह एक अत्‍यंत नस्लवादी टिप्पणी थी।
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    -हाँ? वाह, बहुत खूब।
    -हाँ।
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    क्या कहा आपने?
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    मैंने कहा, आपने अपना कोरोनावायरस
    गिरा दिया।
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    पिछले कुछ महीनों में, एशियाई मूल के लोग
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    सोशल मीडिया पर अपनी कहानियां साझा कर रहे
    हैं कि कैसे उन्‍हें दुत्‍कारा जा रहा है।
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    कैसे उन्हें निशाना बनाया जा रहा है।
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    कैसे उन्‍हें नस्लीय तौर पर सताया गया
    और उनके साथ भेदभाव किया जा रहा है।
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    हमने डॉ. रसेल जोंग से बात की जिन्‍होंने
    एक वेबसाइट बनाने में सहायता की
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    जहां एशियाई अमेरिकी अपने दुत्‍कारे जाने,
    मौखिक उत्पीड़न
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    और उन पर हुए शारीरिक हमले की
    सूचना दे सकते हैं
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    तो हमने जनवरी और फरवरी में समाचारों में
    विदेशीजन भीति प्रतिक्रियाओं में उछाल देखा
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    और हमने अनुभव किया कि जमीनी तौर पर
    यह नियमित रूप से हो रहा था
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    इसलिए मेरे सहयोगी संगठनों, 'चायनीज़ फॉर
    अफ़र्मटिव एक्शन' और 'A3PCON'
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    के साथ हमने स्‍वयं सूचित घटनाओं को
    एकत्रित करने के लिए एक वेबसाइट बनाई।
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    और जब से हमने इसे प्रारंभ किया,
    हमारे पास प्रतिक्रियाओं की बाढ़ आ गई है।
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    तो हर दिन 100 से अधिक मामले आते हैं।
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    क्या यह सब जगह हो रहा था?
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    क्या यह हर उम्र, या लिंग के साथ हो रहा था?
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    एक सबसे बड़ी बात जो हम देख रहे हैं
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    वह है पुरुषों के बजाय स्‍त्रियों को सताए
    जाने की संभावना तीन गुना अधिक होना।
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    और सिर्फ चीनी लोग ही इन हमलों का
    शिकार नहीं बन रहें है,
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    बल्‍कि जो भी चीनी सा दिखता है वह भी।
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    इसलिए यह नस्लीय परिच्‍छेदिकायन है।
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    मैं देखता हूं कि जब भी एशियाई अमेरिकी लोग
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    या दूसरे रंग के लोग नस्लवाद का
    सामना करते हैं,
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    तो वहाँ सदैव विरोध होता है।
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    मैं चाहता हूं कि एशियाई अमेरिकी
    रेलियां निकालते रहें
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    और विदेशीजन भीति वाले बयानों को चुनौती दें
    और सरकार के साथ
  • 3:03 - 3:06
    रणनीतिक नीतियों के विकास के लिए काम करें
    और हमारे समुदायों की सहायता करें।
  • 3:06 - 3:10
    आइए सोशल मीडिया का उपयोग लोगों को जोड़ेने
    के लिए करें, हमें बांटने के लिए नही।
  • 3:10 - 3:13
    अगली बार तक झूठी खबरें न फैलाएं।
    सच्‍ची खबरें फैलाएं !
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    मैं हरि श्रीनिवासन हूं और यह टेक ऑन फेक है
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    यदि आप नस्लीय भेदभाव के साक्षी या उसके
    शिकार बने थे
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    जो कि आपको लगता है कोरोनावायरस
    से प्रेरित है
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    तो नीचे दिए गए विवरण में लिंक को देखें।
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    और यदि आपके सोशल मीडिया में
    कुछ ऐसा परोसा गया है,
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    जो सही नहीं है, और आप चाहते हैं
    हमारा दल उसे देखे।
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    तो कृपया उसे नीचे टिप्पणी में लिख दें।
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    धन्यवाद। फिर मिलेंगे।
Title:
गलत सूचना नस्लवाद और विदेशीजन भीति को कैसे जन्म देती है?
Description:

COVID-19 कहां से आया? शोधकर्ताओं के पास मजबूत सिद्धांत हैं, किन्‍तु उनमें से किसी में भी चमगादड़ के शोरबे का सेवन शामिल नहीं है। तो हाल ही में 2016 से चमगादड़ के शोरबा का सेवन करने वाली महिला का वीडियो वायरल क्यों हुआ? और इसने इंटरनेट पर इस तरह की कटु आलोचना को क्यों उकसाया? हम सैन फ्रांसिस्को स्टेट यूनिवर्सिटी के डॉ. रसेल ज्यूंग के साथ बात करते हैं और बेहतर ढंग से समझने की कोशिश करते हैं कि संकट के समय गलत सूचना और विदेशीजन भीति एक साथ कैसे काम करते हैं। कोरोना वायरस से प्रेरित नस्लीय उत्पीड़न की घटनाओं की सूचना देने के लिए वेबसाइट है: https://bit.ly/2RnipbE

लाइक और सब्सक्राइब करना न भूलें: https://bit.ly/3dziPoH

टेक ऑन फेक उन नकली दावों की पोल खोलता जिन्हें आपने ऑनलाइन देखा या साझा किया है ताकि आपको यह दिखाया जा सके कि आपको कैसे सूचना प्राप्‍त करनी चाहिए। मेजबान हरि श्रीनिवासन सच्चाई को उजागर करने के लिए विश्वसनीय स्रोत खोजने के लिए शीर्षक से अधिक पढ़कर इंटरनेट की गलत सूचना की अंधी गली का अनुसरण करते हैं।

#TakeOnFake

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Video Language:
English
Team:
Amplifying Voices
Project:
Misinformation and Disinformation
Duration:
03:35

Hindi subtitles

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